Ratan Tata और 20 वर्षीय Shantanu की अनोखी दोस्ती... कैसे हुई थी पहली मुलाकात और फिर बन गए बेस्टफ्रेंड

Edited By Mahima,Updated: 12 Oct, 2024 09:36 AM

unique friendship of ratan tata and 20 year old shantanu

रतन टाटा और शांतनु नायडू की दोस्ती की कहानी एक प्रेरणा है। शांतनु, जो आवारा कुत्तों के लिए रिफ्लेक्टिव कॉलर बनाने के अपने प्रोजेक्ट से रतन टाटा का ध्यान आकर्षित करते हैं, उनके करीबी सहयोगी बन जाते हैं। समाज सेवा और उद्यमिता में सक्रिय, शांतनु ने...

नेशनल डेस्क: 9 अक्टूबर 2024 की रात, भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति और समाजसेवी रतन टाटा का निधन हो गया, जिसने पूरे देश में शोक की लहर पैदा कर दी। रतन टाटा, जिनका नाम हर भारतीय के दिल में खास जगह रखता है, ने न केवल उद्योग जगत में अपनी पहचान बनाई, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाई। उनकी अंतिम यात्रा में देश-विदेश की कई जानी-मानी हस्तियां शामिल हुईं, लेकिन एक व्यक्ति जो विशेष रूप से इस मौके पर भावुक नजर आया, वह थे उनके करीबी दोस्त शांतनु नायडू।

शांतनु नायडू: एक युवा उद्यमी
शांतनु नायडू का जन्म 1993 में पुणे में हुआ था। उन्होंने 2014 में सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए 2016 में कॉर्नेल जॉनसन ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर की डिग्री प्राप्त की। उनकी पढ़ाई के बाद, उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टाटा एलेक्सी में ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर के रूप में की। शांतनु की टाटा समूह में यात्रा यहीं खत्म नहीं हुई। 2017 से, वह टाटा ट्रस्ट में काम कर रहे हैं और धीरे-धीरे रतन टाटा के करीबी सहयोगी बन गए। उनके असिस्टेंट बनने के बाद, उन्होंने रतन टाटा की सोच और दृष्टिकोण को समझा, जिससे उनकी मित्रता और भी गहरी हो गई।

रतन टाटा से पहली मुलाकात
शांतनु की रतन टाटा से पहली मुलाकात 2014 में हुई थी, जब वह अपने एक अनोखे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। शांतनु ने आवारा कुत्तों के लिए रिफ्लेक्टिव कॉलर बनाने का काम शुरू किया था। यह कॉलर अंधेरे में ड्राइवरों को आवारा कुत्तों को देखने में मदद करता था, जिससे सड़क पर होने वाले हादसों को रोका जा सके। रतन टाटा इस अभिनव विचार से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने शांतनु से व्यक्तिगत रूप से संपर्क किया। इस मुलाकात ने दोनों के बीच एक गहरे संबंध की शुरुआत की। उस समय शांतनु की उम्र केवल 20 वर्ष थी, लेकिन उनके विचार और उनके काम ने रतन टाटा का ध्यान आकर्षित किया। 

दोस्ती का सफर
इसके बाद, शांतनु नायडू और रतन टाटा की मित्रता और भी मजबूत हो गई। रतन टाटा ने उन्हें अपने असिस्टेंट के रूप में काम करने का प्रस्ताव दिया, और इसी के साथ उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान को साझा करना शुरू किया। रतन टाटा की सलाह और मार्गदर्शन ने शांतनु को एक नई दिशा दी और उनके लिए एक आदर्श मित्र की तरह साबित हुआ। शांतनु नायडू ने रतन टाटा को स्टार्टअप्स में निवेश के लिए सलाह देने में भी मदद की। उनकी समझदारी और रचनात्मकता ने रतन टाटा को और भी प्रभावित किया। इससे पहले कि कोई और उन्हें मौका दे, रतन टाटा ने उन्हें अपने ऑफिस में जनरल मैनेजर का पद दिया। 

घूमने वाले कुत्तों की मदद
शांतनु नायडू केवल एक पेशेवर नहीं हैं, बल्कि वे समाज सेवा में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। उन्होंने "मोटोपॉज" नाम की संस्था बनाई है, जो सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों की मदद करती है। इस संस्था का उद्देश्य जानवरों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना और उनकी देखभाल करना है। शांतनु ने मोटोपॉज के तहत 17 शहरों में विस्तार किया और 250 से अधिक कर्मचारियों को काम पर रखा। यह उनकी प्रेरणा का एक उदाहरण है कि वे न केवल उद्योग में सफल होना चाहते हैं, बल्कि समाज की भलाई के लिए भी कुछ करना चाहते हैं। इसके अलावा, शांतनु "Goodfellows" नामक एक स्टार्टअप के मालिक भी हैं, जो सीनियर सिटीजन को व्यापक समर्थन प्रदान करता है। इस कंपनी का मूल्यांकन लगभग 5 करोड़ रुपये है और यह वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक सशक्त समाधान प्रदान करती है। 

रतन टाटा की विरासत
रतन टाटा का योगदान केवल व्यवसाय तक सीमित नहीं था। उन्होंने समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को भी बखूबी निभाया। उनकी दोस्ती और शांतनु के साथ का यह सफर इस बात का प्रतीक है कि सच्ची मित्रता उम्र और स्थिति की परवाह नहीं करती। शांतनु की भावुक पोस्ट और उनकी दोस्ती की कहानी ने यह साबित कर दिया है कि रतन टाटा केवल एक उद्योगपति नहीं थे, बल्कि एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने अपने आस-पास के लोगों के दिलों में एक खास स्थान बनाया। उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी, और उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत रहेगा।

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