Edited By Rahul Rana,Updated: 17 Mar, 2025 03:51 PM

मोबाइल और इंटरनेट टेक्नोलॉजी के विकास ने संचार व्यवस्था में क्रांति ला दी है लेकिन इसके साथ ही साइबर सुरक्षा, जासूसी और डेटा लीक जैसे गंभीर जोखिम भी बढ़ गए हैं, खासतौर पर सरकारी दफ्तरों में मोबाइल फोन के बढ़ते इस्तेमाल ने राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे...
नेशनल डेस्क: मोबाइल और इंटरनेट टेक्नोलॉजी के विकास ने संचार व्यवस्था में क्रांति ला दी है लेकिन इसके साथ ही साइबर सुरक्षा, जासूसी और डेटा लीक जैसे गंभीर जोखिम भी बढ़ गए हैं, खासतौर पर सरकारी दफ्तरों में मोबाइल फोन के बढ़ते इस्तेमाल ने राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। सरकारी कार्यालयों में मोबाइल फोन के अनधिकृत उपयोग से जासूसी, संवेदनशील डेटा लीक और साइबर हमलों का खतरा बढ़ जाता है। हाल ही में उत्तर प्रदेश आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने एक व्यक्ति को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। वह हनी ट्रैप में फंसकर संवेदनशील सैन्य जानकारी पाकिस्तान में अपने हैंडलर्स को भेज रहा था।
विशेषज्ञों का मानना है कि पहले सरकारी दफ्तरों में वायडर् टेलीफोन का उपयोग किया जाता था, जिससे डेटा लीक और जासूसी के जोखिम बेहद कम थे। लेकिन, स्माटर्फोन और वायरलेस तकनीक के आने से संवेदनशील जानकारियों के लीक होने का खतरा बढ़ गया है। उन्नत स्पाइवेयर और रिमोट एक्सेस टूल्स किसी भी स्माटर्फोन को जासूसी उपकरण में बदल सकते हैं। सरकारी बैठकों में अनजाने में मोबाइल फोन को साथ रखना भी एक बड़ा जोखिम हो सकता है। स्पाइवेयर तकनीक से माइक्रोफोन को दूर से सक्रिय कर संवेदनशील चर्चाओं को रिकॉडर् किया जा सकता है। इससे राष्ट्रीय रक्षा, कूटनीतिक वार्ताएं और सार्वजनिक सुरक्षा तक प्रभावित हो सकती हैं।
भले ही सरकार ने कुछ खास जगहों पर मोबाइल उपकरणों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया हो लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि संवेदनशील जानकारी के किसी भी लीक से बचने के लिए मोबाइल फोन या उपकरणों के इस्तेमाल पर एक व्यापक नीति तैयार की जानी चाहिए। सरकारी दफ्तरों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए कई देशों में मोबाइल फोन के उपयोग पर सख्त प्रतिबंध लगाए गए हैं। भारत में भी उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों में मोबाइल उपकरणों के उपयोग पर कड़े नियम लागू करने की मांग बढ़ रही है। सुरक्षा विशेषज्ञों ने सरकारी बैठकों को सुरक्षित बनाने के लिए कई उपाय अपनाने के सुझाव दिए हैं।
इनमें केवल अधिकृत और एन्क्रिप्टेड संचार माध्यमों का उपयोग किया जाना, उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों में सिग्नल जैमिंग और ध्वनिरोधी दीवारों का उपयोग, कार्यालयों में छुपे हुए जासूसी उपकरणों और दुर्भावनापूर्ण सॉफ़्टवेयर की निगरानी के लिए नियमित स्कैनिंग किया जाना शामिल है। साथ ही सरकारी कर्मचारियों के लिए मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग पर सख्त दिशा-निर्देश लागू किए जाएं। विशेषज्ञों के अनुसार, तकनीक के बढ़ते उपयोग के साथ सरकारी कार्यालयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाना आवश्यक है। साइबर जासूसी और डेटा लीक जैसी घटनाओं से बचने के लिए सख्त नियम, मजबूत सुरक्षा उपाय और कर्मचारियों को डिजिटल सुरक्षा के प्रति जागरूक करना जरूरी है। राष्ट्रीय हितों और संवेदनशील जानकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार को आधुनिक तकनीक के साथ कदमताल करते हुए सुरक्षा नीतियों को और मजबूत करना होगा।