Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 13 Jan, 2025 03:27 PM
भारतीय संसद में बढ़ रहे हंगामों पर गंभीर चिंता जताते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो लोकतंत्र के लिए यह एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि संसद में कार्यों का अवरोध और सदन का निष्क्रिय...
नेशनल डेस्क : भारतीय संसद में बढ़ रहे हंगामों पर गंभीर चिंता जताते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो लोकतंत्र के लिए यह एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि संसद में कार्यों का अवरोध और सदन का निष्क्रिय होना एक जनांदोलन को जन्म दे सकता है, जो संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों को चुनौती देगा। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने डॉ. के.एस. चौहान द्वारा लिखित पुस्तक 'संसद: शक्तियां, कार्य और विशेषाधिकार; एक तुलनात्मक संवैधानिक परिप्रेक्ष्य' का विमोचन करते हुए यह बात कही। उन्होंने संसद के कार्यों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि यदि सदन कार्यात्मक नहीं रहेगा, तो यह न केवल देश की नीतियों को प्रभावित करेगा, बल्कि नागरिकों के प्रति संसद की जिम्मेदारी को भी कमजोर करेगा। उन्होंने संसद के कार्य को देश के विकास और प्रगति के लिए अनिवार्य बताया और कहा, "संसद का मुख्य उद्देश्य यह है कि यह कार्यात्मक रहे, इसमें संवाद और बहस हो, और सरकार को जवाबदेह ठहराया जाए।"
संसद के कार्य न करने से क्या होगा?
धनखड़ ने कहा कि अगर संसद कार्य नहीं करेगी तो यह धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो जाएगी और यह लोकतंत्र के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह स्थिति जारी रही, तो लोगों को बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जो देश में असंतोष का संकेत होगा। "हम एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए हमें अपनी प्रति व्यक्ति आय में आठ गुना वृद्धि करनी होगी। यह तभी संभव होगा जब संसद पूरी तरह से कार्यशील और प्रभावी होगी," उन्होंने कहा।
नैतिक मानकों का उल्लंघन, चिंता का विषय है
उपराष्ट्रपति ने संसद में नैतिक मानकों के उल्लंघन पर भी चिंता जताई। उन्होंने एक गंभीर उदाहरण पेश करते हुए कहा कि कुछ समय पहले, राज्यसभा की एक विशेष सीट पर 500 रुपये के नोटों की एक गड्डी मिली, लेकिन किसी ने उसे लेने की जिम्मेदारी नहीं ली। यह घटना संसद के नैतिकता और उत्तरदायित्व पर सवाल खड़ा करती है। धनखड़ ने कहा, "यह हमारे नैतिक मानकों के लिए एक सामूहिक चुनौती है और हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए।"
संसद की भूमिका में सुधार की आवश्यकता है
धनखड़ ने कहा कि संसद का उद्देश्य केवल कानून बनाना नहीं है, बल्कि यह देश की सरकार को जवाबदेह बनाने, उसके कार्यों का विश्लेषण करने और समाज की समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने का भी है। "सांसदों को मुद्दों पर अपनी बात रखने का अधिकार होना चाहिए ताकि वे अपनी क्षमता और ज्ञान का सही इस्तेमाल कर सकें," उन्होंने कहा।
उपराष्ट्रपति ने सांसदों की भूमिका पर भी जोर दिया और कहा कि संसद तभी प्रभावी होगी जब इसके सदस्य अपनी पूरी क्षमता और ईमानदारी से काम करेंगे। उन्होंने विश्वास जताया कि यह पुस्तक उन लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत साबित होगी, जो देश की प्रगति में योगदान देने का संकल्प रखते हैं।