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Wakf Amendment Bill 2025: सुप्रीम कोर्ट पलट भी सकता है वक्फ बिल का फैसला! जानें ऐतिहासिक फैसलों का असर

Edited By Anu Malhotra,Updated: 05 Apr, 2025 03:10 PM

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वक्फ संशोधन विधेयक 2025 संसद से पारित होने के बाद से सियासी हलचल मची हुई है। इस विधेयक के खिलाफ अब कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, साथ ही AAP नेता अमानतुल्लाह खान भी इसे चुनौती देने...

नेशनल डेस्क: वक्फ संशोधन विधेयक 2025 संसद से पारित होने के बाद से सियासी हलचल मची हुई है। इस विधेयक के खिलाफ अब कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, साथ ही AAP नेता अमानतुल्लाह खान भी इसे चुनौती देने की योजना बना रहे हैं। इन नेताओं का कहना है कि यह विधेयक संविधान की मूल संरचना और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।

ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट इस विधेयक को रद्द कर सकता है?
इसके लिए कई ऐतिहासिक फैसले संदर्भ बन सकते हैं, जिन्होंने यह साबित किया है कि अदालत के पास संसद द्वारा पारित कानूनों को पलटने की शक्ति है। आइए जानते हैं उन फैसलों के बारे में जिन्होंने यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट संविधान की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  1. ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950) – यह केस सुप्रीम कोर्ट का शुरुआती फैसला था जिसमें कोर्ट ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को प्राथमिकता दी और कुछ प्रावधानों को संशोधित करने का आधार तैयार किया।

  2. शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (1951) – इस फैसले में संसद के संविधान संशोधन के अधिकार को स्वीकार किया गया, लेकिन बाद में इसके दायरे को सीमित किया गया, जो वक्फ बिल जैसे मामलों के लिए प्रासंगिक है।

  3. गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) – सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि संसद मौलिक अधिकारों में कोई संशोधन नहीं कर सकती, जिससे वक्फ बिल पर भी चुनौती दी जा सकती है।

  4. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘मूल संरचना सिद्धांत’ को स्थापित किया, जो यह बताता है कि संसद संविधान की मूल भावना से छेड़छाड़ नहीं कर सकती।

  5. इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राजनारायण (1975) – इस मामले में कोर्ट ने 39वें संविधान संशोधन को रद्द कर दिया था, क्योंकि यह मूल संरचना के खिलाफ था।

  6. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980) – कोर्ट ने अनुच्छेद 368 के खंड (4) को असंवैधानिक करार दिया, जो न्यायिक पुनर्विलोकन को सीमित करता था।

  7. आईआर कोएलो बनाम तमिलनाडु राज्य (2007) – कोर्ट ने यह फैसला दिया कि 1973 के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल कानूनों को मूल संरचना के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी जा सकती है।

इन फैसलों को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या वक्फ संशोधन विधेयक के प्रावधान सुप्रीम कोर्ट की निगाहों में खड़े हो सकते हैं। हालांकि कुछ फैसलों में अदालत ने सरकार के पक्ष में निर्णय दिए हैं, लेकिन कई बार उसने संविधान की मूल संरचना को बचाने के लिए बड़े संशोधनों को पलटने का साहस भी दिखाया है। अब यह सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर है कि वह इस विधेयक की संवैधानिकता पर क्या निर्णय लेता है और क्या यह इतिहास में दर्ज उन ऐतिहासिक फैसलों की राह पर चलेगा।

 

 

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