Edited By Utsav Singh,Updated: 08 Oct, 2024 04:34 PM
साहित्यकार एवम पर्यावरणविद् राजीव आचार्य के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण जल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है । भारत में भी प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता मानक से कम है।ऐसे में जल के उपयोग , और इसके संरक्षण पर चिंतन आवश्यक है । भारतीय संस्कृति में...
नई दिल्ली : साहित्यकार एवम पर्यावरणविद् राजीव आचार्य के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण जल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है । भारत में भी प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता मानक से कम है।ऐसे में जल के उपयोग, और इसके संरक्षण पर चिंतन आवश्यक है। भारतीय संस्कृति में प्रारंभ से ही जल की महत्ता का वर्णन राजीव आचार्य कहते हैं कि भारतीय शास्त्रों में जल को जीवन का आधार माना गया है और जल के संरक्षण पर विशेष महत्त्व दिया गया है। वेद, पुराण, उपनिषद, सहिंता और अन्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक ग्रंथों में जल को पवित्र, अमूल्य और जीवनदायी तत्व के रूप में देखा गया है। विभिन्न पुराणों और महाभारत, रामायण जैसे आदि ग्रंथों में भी जल की महत्ता का वर्णन किया गया है।
वेदो में जल का महत्व
राजीव आचार्य के अनुसार वेदों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जलस्रोतों की रक्षा करना मनुष्य का कर्तव्य है। जलवायु संतुलन बनाए रखने के लिए जलस्रोतों का संरक्षण और पुनः निर्माण आवश्यक है। शास्त्रों में जल को दूषित न करने की बात कही गई है। किसी भी प्रकार के कचरे या मल-मूत्र का जलस्रोतों में प्रवाह वर्जित है। यह नियम जल की पवित्रता और स्वच्छता को बनाए रखने के लिए बनाए गए थे। ऋग्वेद (10.9.1) के ऋषि कहते है, आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न योरभि स्रवन्तु नः, पश्चात न येषु बोध्यविध्येत मनसस्पते अर्थात हे जल! आप आनंद और कल्याणकारी हैं। जिन नदियों, धाराओं या जलस्रोतों से आप प्रवाहित होते हैं, वे हमें शुद्ध करें और हमें सही मार्ग पर ले चलें। इन जल स्रोतों में जो दिव्य चेतना है, वह हमें ज्ञान प्रदान करें।
ऋग्वेद के मंडल 10.9.6 में ऋषि कहते है, " आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता योरभि स्रवन्तु याः अभि भ्रान्ति मानवः " अर्थात हे जल! आप आनंद और कल्याणकारी हैं। आप जिन जल स्रोतों से प्रवाहित होते हैं, वे हमें पवित्र करें, और वे स्रोत, जिनमें सूर्य की किरणें चमकती हैं, हमें आलोकित करें। ऋग्वेद में जल को 'अपः' कहा गया है और इसे जीवन का आधार माना गया है। ऋग्वेद के मंडल 10 के सूक्त 9 के मंत्र 1 से 10 तक में जल की महिमा और उसकी पवित्रता का वर्णन किया गया है।
भारतीय शास्त्रों में जल का रोगनाशक के रूप में वर्णन
वेदों , उपनिषदों , पुराणों में जल की महत्ता का वर्णन करते हुए जल को समस्त रोगों का नाशक बताया गया है । जल ही जीवन है , यह तथ्य भारतीय संस्कृति में रसा बसा है । ऋग्वेद के ऋचाए कहती हैं कि अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तये । देवा भवत वाजिन:। ऋग्वेद (१।२३।१९) अर्थात्- हे देवों! तुम अपनी उन्नति के लिए जलों के भीतर जो अमृत व औषधि है,उनको जान कर जल के प्रयोग से ज्ञानी बनो।
वर्षा के जल की महत्ता
राजीव आचार्य के अनुसार प्राचीन ग्रन्थों में जल संरक्षण पर विशेष बल दिया गया है। भारतीय शास्त्र में वर्षा के जल को अत्यंत उपयोगी कहा गया है। अर्थवेद में वर्षा के जल की महत्ता का वर्णन करते हुए ऋषि कहते हैं कि - शिवा नः सन्तु वार्षिकीः। अर्थात वर्षा का जल अत्यंत कल्याणकारी है।विष्णु पुराण में जल-चक्र का वर्णन किया गया है । विष्णु पुराण में जल के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है कि जल वाष्प के रूप में , फिर वर्षा के रूप में भूमि को तृप्त करता है। जल से ही अन्न उत्पन्न होता है जिससे समस्त जगत के प्राणियों का पोषण होता है ।
विवस्वानर्ष्टाभर्मासैरादायापां रसात्मिकाः ।
वर्षत्युम्बु ततश्चान्नमन्नादर्प्याखिल जगत्।
जल का संरक्षण और सम्मान करना चाहिए
तैत्तिरीय उपनिषद के तृतीय खंड बृहदारण्यक उपनिषद में कहा गया है कि "आपः वा इदं सर्वं" यानी जल ही सब कुछ है। यह जल की सर्वव्यापकता और उसकी अनिवार्यता को दर्शाता है, जिससे जल के संरक्षण की आवश्यकता स्वतः स्पष्ट होती है। छांदोग्य उपनिषद के छठे अध्याय के दूसरे खंड (6.2.1) के श्लोक के अनुसार, सृष्टि की उत्पत्ति के लिए ब्रह्म ने सबसे पहले जल का सृजन किया। इस श्लोक के माध्यम से यह संदेश दिया है कि जल का संरक्षण और सम्मान करना चाहिए, क्योंकि यह सृष्टि का मूल आधार है।
जल की पूजा और इसका संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण
साहित्यकार एवम पर्यावरणविद् राजीव आचार्य कहते है कि भारतीय शास्त्रों में समय समय पर जल की महत्ता का वर्णन किया गया है जिससे जनमानस जल के महत्त्व को समझे और उसके बचाव पर ध्यान दे ।महाभारत के अनुशासन पर्व के अध्याय 109 में वर्णन है कि भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे थे तब उन्होंने राजा युधिष्ठिर को राज्य संचालन के लिए जल के महत्व पर शिक्षा दी थी। महाभारत में कहा गया है कि जल वास्तव में जीवन और पोषण का आधार है। यह प्राणियों को ऊर्जा प्रदान करता है और संसार में जीवन को बनाए रखता है। जल को ऊर्जा, पोषण और दृष्टि के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो जीवन और प्रकृति के संचालन के लिए आवश्यक है। भीष्म ने युधिष्ठिर को यह भी बताया कि जल की पूजा और इसका संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जल ही जीवन का आधार है और इसके बिना जीवन संभव नहीं है।
राजीव आचार्य कहते हैं कि विश्व के जल संसाधनों का 4% और इसकी आबादी का 16% हिस्सा भारत के पास है। प्रत्येक वर्ष पूरे देश में वर्षा से लगभग 4,000 क्यूबिक किलोमीटर पानी उपलब्ध होता है। ऐसे में जल के संरक्षण का महत्त्व और भी बढ़ जाता है । हमारा कर्तव्य है कि हम जल की बरबादी को रोके और उसके संरक्षण पर विशेष कदम उठाए।