Edited By rajesh kumar,Updated: 03 Dec, 2024 06:47 PM
सरकार ने भारत एवं चीन के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल 2020 के पूर्व की स्थिति बहाल होने को ‘सुधार की दिशा' बताते हुए आज साफ किया कि भारत चीन संबंधों में प्रगति के लिए सीमा क्षेत्रों में शांति एवं सौहार्द बनाए रखना एक...
नेशनल डेस्क: सरकार ने भारत एवं चीन के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल 2020 के पूर्व की स्थिति बहाल होने को ‘सुधार की दिशा' बताते हुए आज साफ किया कि भारत चीन संबंधों में प्रगति के लिए सीमा क्षेत्रों में शांति एवं सौहार्द बनाए रखना एक पूर्व-आवश्यकता है और हम अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को सर्वोपरि रखते हुए ही आगे बढ़ेंगे। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में चीन के साथ 21 अक्टूबर को हुए समझौते तथा उसके बाद भारत एवं चीन के द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति को लेकर एक वक्तव्य दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं सदन को भारत चीन सीमा क्षेत्रों में हाल ही में घटी कुछ घटनाओं और हमारे समग्र द्विपक्षीय संबंधों पर उनके प्रभावों से अवगत कराना चाहता हूँ। सदन को पता है कि 2020 से हमारे संबंध असामान्य रहे हैं, जब चीनी कारर्वाइयों के परिणामस्वरूप सीमा क्षेत्रों में शांति और सौहार्द भंग हुआ था। हाल की घटनाएँ, जो तब से हमारे निरंतर कूटनीतिक जुड़ाव को दर्शाती हैं, ने हमारे संबंधों को कुछ सुधार की दिशा में स्थापित किया है।''
विदेश मंत्री भारत चीन संबंधों की पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘सदन इस तथ्य से अवगत है कि 1962 के संघर्ष और उससे पहले की घटनाओं के परिणामस्वरूप चीन ने अक्साई चिन में 38 हजार वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर रखा है। इसके अलावा, पाकिस्तान ने 1963 में अवैध रूप से 5180 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र चीन को सौंप दिया, जो 1948 से उसके कब्जे में था। भारत और चीन ने सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए कई दशकों तक बातचीत की है। जबकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में इस पर आम सहमति नहीं है। हम सीमा समझौते के लिए एक निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य ढांचे पर पहुंचने के लिए द्विपक्षीय चर्चाओं के माध्यम से चीन के साथ जुड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
उन्होंने याद दिलाया कि अप्रैल/मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन द्वारा बड़ी संख्या में सैनिकों को एकत्र करने के परिणामस्वरूप कई बिंदुओं पर हमारी सेनाओं के साथ आमना-सामना हुआ। इस स्थिति के कारण गश्ती गतिविधियों में भी बाधा उत्पन्न हुई। यह हमारे सशस्त्र बलों के लिए श्रेय की बात है कि रसद संबंधी चुनौतियों और उस समय व्याप्त कोविड स्थिति के बावजूद, वे तेजी से और प्रभावी ढंग से जवाबी तैनाती करने में सक्षम थे।
उन्होंने कहा कि चीन के साथ हमारे संबंधों का समकालीन चरण 1988 से शुरू होता है, जब यह स्पष्ट समझ थी कि चीन-भारत सीमा प्रश्न को शांतिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण परामर्श के माध्यम से सुलझाया जाएगा। 1991 में, दोनों पक्ष सीमा प्रश्न के अंतिम समाधान तक एलएसी के साथ क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बनाए रखने पर सहमत हुए। इसके बाद, 1993 में शांति और सौहार्द बनाए रखने पर एक समझौता हुआ। इसके बाद 1996 में, भारत और चीन सैन्य क्षेत्र में विश्वास निर्माण उपायों पर सहमत हुए। वर्ष 2003 में, हमने अपने संबंधों और व्यापक सहयोग के सिद्धांतों पर एक घोषणा को अंतिम रूप दिया, जिसमें विशेष प्रतिनिधियों की नियुक्ति भी शामिल थी।
2005 में, एलएसी पर विश्वास निर्माण उपायों के कार्यान्वयन के लिए तौर-तरीकों पर एक प्रोटोकॉल तैयार किया गया था। उसी समय, सीमा प्रश्न के समाधान के लिए राजनीतिक मापदंडों और मार्गदर्शक सिद्धांतों पर सहमति हुई थी। डॉ. जयशंकर ने कहा, ‘‘2012 में, परामर्श और समन्वय के लिए एक कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) की स्थापना की गई थी और एक साल बाद 2013 में, हम सीमा रक्षा सहयोग पर भी एक समझ पर पहुँचे। इन समझौतों को याद करने का मेरा उद्देश्य शांति और सौहार्द सुनिश्चित करने के हमारे साझा प्रयासों की विस्तृत प्रकृति को रेखांकित करना है। और 2020 में इसके अभूतपूर्व व्यवधान ने हमारे समग्र संबंधों के लिए जो कुछ भी निहित किया है, उसकी गंभीरता पर जोर देना है।''
अगली प्राथमिकता तनाव कम करने पर- जयशंकर
उन्होंने कहा ‘‘2020 में हमारी जवाबी तैनाती के बाद पैदा हुई स्थिति में कई तरह की प्रतिक्रियाओं की ज़रूरत थी। तात्कालिक प्राथमिकता टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों की वापसी सुनिश्चित करना था ताकि आगे कोई अप्रिय घटना या झड़प न हो। यह पूरी तरह से हासिल हो चुका है। अगली प्राथमिकता तनाव कम करने पर विचार करना होगी, जो एलएसी पर सैनिकों की तैनाती और उनके साथ अन्य लोगों की तैनाती को संबोधित करेगा। यह भी स्पष्ट है कि हमारे हालिया अनुभवों के मद्देनजर सीमा क्षेत्रों के प्रबंधन पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
इन सबमें, हम पहले भी स्पष्ट थे और अब भी हैं कि तीन प्रमुख सिद्धांतों का सभी परिस्थितियों में पालन किया जाना चाहिए: (1) दोनों पक्षों को एलएसी का कड़ाई से सम्मान और पालन करना चाहिए, (2) किसी भी पक्ष को यथास्थिति को एकतरफा बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए, और (3) अतीत में हुए समझौतों और सहमतियों का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।''