Edited By Mahima,Updated: 19 Oct, 2024 12:27 PM
भारत की थारू जनजाति दिवाली को 'दिवारी' के रूप में मनाती है, जो शोक पर्व है। इस दिन, वे अपने दिवंगत परिजनों को याद करते हैं और उनके लिए पुतला बनाकर जलाते हैं। थारू जनजाति मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और नेपाल में पाई जाती है। परिवार...
नेशनल डेस्क: दिवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, भारत में खुशियों और समृद्धि का पर्व माना जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का जश्न मनाया जाता है। देशभर में लोग अपने घरों को रंग-बिरंगी रोशनी और दीयों से सजाते हैं, मिठाइयाँ बांटते हैं और परिवार-समाज के साथ इस खास दिन का आनंद लेते हैं। लेकिन भारत में एक ऐसा समुदाय भी है, जो इस दिन को खुशियों के बजाय शोक मनाने का अवसर मानता है। यह समुदाय है थारू जनजाति, जो दिवाली को 'दिवारी' के रूप में मनाता है और अपने पूर्वजों को याद करता है।
थारू जनजाति का परिचय
थारू जनजाति भारत के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों में पाई जाती है। इनके अलावा, ये लोग नेपाल में भी बसे हुए हैं। थारू जनजाति का नाम थार रेगिस्तान के नाम पर रखा गया है, जहाँ से इसकी उत्पत्ति मानी जाती है। थारू जनजाति की पहचान उसकी अद्भुत परंपराओं, मान्यताओं और सांस्कृतिक धरोहर के लिए होती है। यह जनजाति अपने आप को राजपूतों का वंशज मानती है और इसमें कई अनोखी परंपराएँ पाई जाती हैं।
दिवाली का शोक पर्व
जब पूरे भारत में लोग दिवाली की खुशियाँ मनाते हैं, तब थारू जनजाति के लोग इसे एक गंभीर पर्व के रूप में मनाते हैं। इस दिन को वे 'दिवारी' कहते हैं, और इसका उद्देश्य अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना होता है। यह जनजाति दिवाली के दिन अपने स्वर्गवासी परिजनों की याद में विशेष अनुष्ठान करती है। उनके लिए यह दिन आस्था और श्रद्धा का प्रतीक होता है।
शोक मनाने की परंपरा
थारू जनजाति के लोग दिवारी के दिन अपने दिवंगत परिवारजनों के लिए विशेष समारोह आयोजित करते हैं। इस दिन वे अपने स्वर्गवासी परिजनों की याद में एक पुतला तैयार करते हैं और उसे जलाते हैं। पुतला जलाने के बाद, परिवार के सभी सदस्य एकत्र होते हैं और भोज का आयोजन करते हैं। यह भोज केवल खाने का नहीं, बल्कि एक प्रकार से अपने पूर्वजों को सम्मान देने का एक तरीका होता है। वे अपने परिवार के उन सदस्यों को याद करते हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं और उनकी याद में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
परिवार में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका
थारू जनजाति में परिवार की मुखिया की भूमिका में महिलाएं होती हैं। राना, कठौलिया और डगौरा धड़ों में महिलाएं परिवार की देखरेख करती हैं और निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह बात इस जनजाति की संस्कृति को और अधिक दिलचस्प बनाती है। महिलाओं की यह स्थिति इस बात का प्रमाण है कि थारू जनजाति में लिंग समानता की भावना भी है।
जनसंख्या और वितरण
ब्रिटैनिका वेबसाइट के अनुसार, भारत में थारू जनजाति के लगभग 1,70,000 सदस्य हैं, जबकि नेपाल में यह संख्या लगभग 15 लाख है। यह जनजाति अपनी अनोखी मान्यताओं और परंपराओं के लिए जानी जाती है, जो सदियों से चली आ रही हैं। थारू जनजाति की संस्कृति और परंपराएँ उनके निवास क्षेत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न होती हैं, लेकिन उनकी दिवारी की परंपरा सभी स्थानों पर समान होती है।
थारू जनजाति का महत्व
थारू जनजाति का यह शोक मनाने का तरीका न केवल उनके सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि हम अपने पूर्वजों को कैसे याद कर सकते हैं। यह परंपरा दर्शाती है कि उत्सव केवल खुशी मनाने का अवसर नहीं है, बल्कि यह अपने प्रियजनों को सम्मान देने का भी एक मौका है। थारू जनजाति ने इस अनूठी परंपरा को बनाए रखा है, जो उनकी संस्कृति और पहचान को विशेष बनाती है। दिवाली के इस पर्व पर थारू जनजाति की परंपरा एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे विभिन्न संस्कृतियों में त्योहारों का महत्व और अर्थ अलग-अलग हो सकता है। जबकि अन्य समुदाय खुशी और उल्लास के साथ इस दिन को मनाते हैं, थारू जनजाति अपने पूर्वजों की याद में इसे शोक पर्व के रूप में मनाती है। यह हमें यह सिखाता है कि हर संस्कृति की अपनी मान्यताएँ और परंपराएँ होती हैं, और हमें उनका सम्मान करना चाहिए।