Edited By Mahima,Updated: 14 Aug, 2024 09:40 AM
14 अगस्त 1947 को, जब पाकिस्तान ने स्वतंत्रता प्राप्त की, युवा लाल कृष्ण आडवाणी ने कराची की सड़कों पर भयावह दृश्य देखे। उस समय 19 साल के आडवाणी ने अपनी आत्मकथा 'माई कंट्री, माई लाइफ' में वर्णन किया है कि कराची की सड़कों पर वह खून से सनी लाशें देखकर...
नेशनल डेस्क: 14 अगस्त 1947 को, जब पाकिस्तान ने स्वतंत्रता प्राप्त की, युवा लाल कृष्ण आडवाणी ने कराची की सड़कों पर भयावह दृश्य देखे। उस समय 19 साल के आडवाणी ने अपनी आत्मकथा 'माई कंट्री, माई लाइफ' में वर्णन किया है कि कराची की सड़कों पर वह खून से सनी लाशें देखकर कितने दंग रह गए थे। यह दृश्य उनके लिए बेहद दर्दनाक था, क्योंकि उन्होंने पहली बार सड़कों पर इस तरह के दृश्य देखे थे। आडवाणी का यह अनुभव पाकिस्तान के निर्माण की प्रक्रिया के दौरान उनके दिलो-दिमाग में गहरा असर छोड़ गया था।
पाकिस्तान का जन्म और आडवाणी का अनुभव
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के जन्म के साथ ही देश का विभाजन भी शुरू हुआ। इस दिन मोहम्मद अली जिन्ना ने कराची में पाकिस्तान की संविधान सभा को संबोधित करते हुए नए देश की स्थापना की घोषणा की। आडवाणी, जो उस समय कराची में थे, ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि उनके मन में स्वतंत्रता के दिन को लेकर कोई खुशी नहीं थी। कई हिंदू बच्चों ने मिठाई लेने से भी इंकार कर दिया, जो उस समय के माहौल को दर्शाता है। आडवाणी ने बताया कि कराची में हिंदू मोहल्ले उस दिन बेहद निराश और सूने थे, और लोग अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता और डर में जी रहे थे। आडवाणी ने मोटरसाइकिल से कई हिंदू कॉलोनियों का दौरा किया और हर जगह एक ही चिंता महसूस की—"अब क्या होगा?"
कराची छोड़ने का निर्णय
आडवाणी के अनुसार, विभाजन की प्रक्रिया के दौरान कराची में माहौल धीरे-धीरे बिगड़ने लगा। उन्होंने 5 अगस्त 1947 को कराची में संघ का पथ संचलन आयोजित किया, जो उस समय के तनावपूर्ण माहौल में हिंदुओं को ढाढ़स दिलाने की कोशिश थी। लेकिन सितंबर 1947 में कराची में एक विस्फोट के बाद माहौल और भी खराब हो गया। आडवाणी ने इस घटना के बाद पाकिस्तान में बने रहने की सोच बदल दी और 12 सितंबर 1947 को कराची छोड़कर दिल्ली आ गए।
पाकिस्तान के विभाजन के परिणाम
विभाजन के दौरान लाखों लोग अपनी जान और घर छोड़ने पर मजबूर हुए। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में मानव पीड़ा का अंतहीन सिलसिला शुरू हो गया। इस त्रासदी के दौरान 1.5 करोड़ लोग अपने घरों से बेघर हो गए, और हजारों लोग हिंसा और अपहरण का शिकार हुए। इस बंटवारे की त्रासदी ने दोनों देशों के बीच एक गहरी खाई छोड़ दी, जो आज भी महसूस की जाती है।
लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव
आडवाणी ने यह भी बताया कि उन्होंने जिन्ना को कभी आमने-सामने नहीं देखा, केवल तस्वीरों और पोस्टरों में देखा। इस तरह की घटनाओं और अनुभवों ने आडवाणी और उनके जैसे कई अन्य लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।
लाखों लोगों का जीवन हुआ प्रभावित
77 साल बाद भी, विभाजन की त्रासदी की कहानियां सुनना और पढ़ना एक गहरा भावनात्मक अनुभव है। यह घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि कैसे साम्प्रदायिक राजनीति और विभाजन की राजनीति ने लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया और उनका भविष्य बदल दिया।