Edited By Utsav Singh,Updated: 10 Aug, 2024 07:51 PM
मोदी सरकार ने गुरुवार को लोकसभा में वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश किया। इस विधेयक की पेशकश के दौरान सरकार को पहले से ही अनुमान था कि सदन में इस पर काफी हंगामा होगा। हालांकि, इस बीच अचानक ही किरेन रिजिजू ने इस बिल को संयुक्त संसदीय...
नेशनल डेस्क : मोदी सरकार ने गुरुवार को लोकसभा में वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश किया। इस विधेयक की पेशकश के दौरान सरकार को पहले से ही अनुमान था कि सदन में इस पर काफी हंगामा होगा। विपक्षी सांसदों ने इस बिल के खिलाफ जमकर हंगामा किया, लेकिन सत्तापक्ष की तरफ से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने विधेयक के महत्व और जरूरत के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कई तर्क और उदाहरणों का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि इस विधेयक का लाना क्यों आवश्यक है।
सहयोगी दलों का समर्थन
इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) को अपने प्रमुख सहयोगियों जनता दल (यूनाइटेड) [JDU] और तेलुगु देशम पार्टी [TDP] का समर्थन प्राप्त है। इन सहयोगी दलों की मदद से सरकार ने विधेयक को दोनों सदनों से पारित कराने की संभावनाओं को मजबूत किया। हालांकि, इस बीच अचानक ही किरेन रिजिजू ने इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की घोषणा कर दी।
जेपीसी की ओर भेजे जाने का निर्णय
सरकार ने बिल को सीधे दोनों सदनों से पारित कराने के बजाय जेपीसी के पास भेजने का निर्णय लिया। यह कदम विधेयक पर गहन विचार-विमर्श और जांच के लिए उठाया गया है। जेपीसी का गठन विशिष्ट मुद्दों पर विस्तार से जांच करने और विभिन्न पक्षों की राय जानने के लिए किया जाता है, जिससे विधेयक की प्रक्रिया में पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित की जा सके।आज हम यहाँ JPC की संरचना, कार्यप्रणाली और महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे...
संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee) भारतीय संसद की एक विशेष समिति होती है जो विशेष विषयों पर विस्तृत जांच और समीक्षा करती है। इसका गठन संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों की सम्मिलित टीम के रूप में किया जाता है। JPC का उद्देश्य विशेष मामलों में विस्तृत जांच करना, रिपोर्ट तैयार करना और संसद को सिफारिशें प्रस्तुत करना होता है।
संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की संरचना और गठन
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गठन:
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JPC का गठन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की संयुक्त टीम के रूप में किया जाता है। दोनों सदनों में से सदस्य आमतौर पर उनके संबंधित सदनों के अध्यक्ष या अध्यक्ष द्वारा चुने जाते हैं।
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इसके गठन की आवश्यकता तब होती है जब संसद के दोनों सदन किसी विशेष विषय पर गहन जांच की आवश्यकता महसूस करते हैं।
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सदस्यता:
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JPC में लोकसभा और राज्यसभा दोनों से सदस्य होते हैं। सदस्यता की संख्या और वितरण का निर्णय संसद द्वारा किया जाता है। सामान्यतः, लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा के सदस्यों की संख्या से अधिक होती है, क्योंकि लोकसभा में अधिक सदस्य होते हैं।
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सदस्य संख्या और सदस्यता की व्यवस्था संसद की आवश्यकताओं और मुद्दे की गंभीरता के आधार पर तय की जाती है।
संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के कार्य
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विशेष मामलों की जांच:
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JPC का मुख्य कार्य विशिष्ट मामलों की गहन जांच करना होता है। ये मामले आमतौर पर विवादास्पद होते हैं या जिनमें गंभीर अनियमितताओं की संभावना होती है।
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उदाहरण के लिए, बड़े वित्तीय घोटाले, महत्वपूर्ण विधायी बदलाव, या विवादित सरकारी नीतियाँ।
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सर्वेक्षण और रिपोर्ट तैयार करना:
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समिति सदस्य मामले की जांच के लिए सबूत एकत्रित करते हैं, गवाहों के बयान दर्ज करते हैं और संबंधित दस्तावेजों की समीक्षा करते हैं।
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जांच के बाद, समिति अपनी रिपोर्ट तैयार करती है जिसमें सिफारिशें और निष्कर्ष होते हैं।
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सिफारिशें और सुधार:
संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का महत्व
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पारदर्शिता और जवाबदेही:
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सुधार और सुझाव:
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संसदीय नियंत्रण:
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JPC संसद को महत्वपूर्ण मामलों पर सही और विस्तार से जानकारी प्रदान करती है, जिससे संसद को बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है। संक्षेप में, संयुक्त संसदीय समिति (JPC) भारतीय संसद का एक महत्वपूर्ण अंग है जो विशेष मामलों की गहन जांच करती है, पारदर्शिता को बढ़ावा देती है और सुधारात्मक सिफारिशें प्रस्तुत करती है।
क्या हैं जेपीसी का गठन और इतिहास :
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पहली जेपीसी - बोफोर्स घोटाला (1987):
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घटनाक्रम: जेपीसी का पहला गठन 1987 में हुआ, जब बोफोर्स घोटाला सामने आया। इस घोटाले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार को गंभीर आरोपों का सामना करना पड़ा।
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परिणाम: जेपीसी की जांच के परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी को 1989 के आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। यह पहला उदाहरण था जब जेपीसी ने सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया।
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दूसरी जेपीसी - पीवी नरसिंह राव सरकार (1992):
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घटनाक्रम: 1992 में पीवी नरसिंह राव की सरकार के खिलाफ सुरक्षा और बैंकिंग लेन-देन में अनियमितताओं के आरोपों पर जेपीसी का गठन किया गया।
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परिणाम: जेपीसी की जांच के बाद 1996 में कांग्रेस पार्टी को चुनावी हार का सामना करना पड़ा।
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तीसरी जेपीसी - स्टॉक मार्केट घोटाला (2001):
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घटनाक्रम: 2001 में स्टॉक मार्केट घोटाले की जांच के लिए जेपीसी का गठन किया गया।
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परिणाम: इस जांच का प्रभाव सरकार पर नहीं पड़ा, क्योंकि यह सरकार अपने कार्यकाल के मध्य में थी।
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चौथी जेपीसी - कीनटाशक पेय पदार्थ (2003):
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पांचवीं जेपीसी - 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2011):
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छठी जेपीसी - VVIP चॉपर घोटाला (2013):
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सातवीं जेपीसी - भूमि अधिग्रहण बिल (2015):
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आठवीं जेपीसी - एनआरसी मुद्दा (2016):
जेपीसी का गठन भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण मोड़ों का हिस्सा रहा है। हर बार, जेपीसी की जांच ने सरकारों के लिए चुनौती पेश की है और कई बार चुनावी परिणामों को भी प्रभावित किया है। जेपीसी की स्थापना और इसकी जांच का उद्देश्य पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, लेकिन इसके परिणाम विभिन्न समयों पर अलग-अलग रहे हैं।