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14 या 15 मार्च: इस साल कब मनाई जाएगी होली, जानें तारीख और शुभ मुहूर्त

Edited By rajesh kumar,Updated: 07 Mar, 2025 02:20 PM

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इस बार होलिका दहन 13 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा। यह मुहूर्त सुबह 10:35 बजे से शुरू होगा और तिथि का समापन 14 मार्च, शुक्रवार को दोपहर 12:23 बजे होगा। लेकिन होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च की रात 11:26 बजे से शुरू होकर 14 मार्च की रात 12:30 बजे...

नई दिल्ली: हर साल होली का त्योहार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है, और इसे रंगों का त्योहार कहा जाता है। इस साल होली का त्योहार 14 मार्च, शुक्रवार को मनाया जाएगा। होली से एक दिन पहले यानी 13 मार्च को होलिका दहन होगा। इसे छोटी होली भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में होलिका दहन किया जाता है।

होलिका दहन का मुहूर्त
इस बार होलिका दहन 13 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा। यह मुहूर्त सुबह 10:35 बजे से शुरू होगा और तिथि का समापन 14 मार्च, शुक्रवार को दोपहर 12:23 बजे होगा। लेकिन होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च की रात 11:26 बजे से शुरू होकर 14 मार्च की रात 12:30 बजे तक रहेगा।

होलिका दहन पर भद्राकाल का प्रभाव
13 मार्च को होलिका दहन से पहले भद्रा का साया रहेगा, जो सुबह 10:35 बजे से रात 11:26 बजे तक रहेगा। इसी समय के बाद होलिका दहन करना शुभ माना जाता है।

कैसे करें होलिका दहन की पूजा?
होलिका दहन की पूजा में एक पेड़ की टहनी को भूमि में स्थापित किया जाता है, और इसे चारों ओर से लकड़ियों, कंडों और उपलों से ढका जाता है। शुभ मुहूर्त में इस ढांचे में अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है। इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेहूं की नई बालियां और उबटन अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि यह अग्नि व्यक्ति को पूरे वर्ष स्वस्थ रखने में सहायक होती है और नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करती है। होलिका दहन के बाद उसकी राख को घर लाकर तिलक करने की भी परंपरा है।

कब से शुरू हुई होलिका दहन की परंपरा 
होलिका दहन का संबंध एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। असुर राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, जिसे हिरण्यकश्यप ने मारने का सोचा। उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में कूद जाए, क्योंकि होलिका के पास यह वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती। लेकिन भगवान की कृपा और प्रह्लाद की भक्ति के कारण होलिका जल गई, जबकि प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं हुआ। तभी से हर साल होली के दिन होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई।

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