Edited By Mahima,Updated: 28 Dec, 2024 02:49 PM
रतन टाटा का शांत स्वभाव उनके लिए पहचाना जाता है, लेकिन एक बार फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड के अपमानजनक शब्दों ने उन्हें गुस्से में आकर टाटा मोटर्स को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने की प्रेरणा दी। इस गुस्से का परिणाम टाटा मोटर्स की सफलता और फोर्ड के...
नेशनल डेस्क: रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ था। वह एक ऐसे इंसान हैं जिनका व्यक्तित्व और कार्यक्षेत्र दोनों ही प्रेरणादायक हैं। टाटा समूह को दुनिया भर में बुलंदियों तक पहुंचाने वाले रतन टाटा का नाम भारतीय उद्योग जगत में बहुत सम्मानित है। उनका स्वभाव हमेशा शांत और सादगी से भरा रहा है, और उन्होंने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी टाटा समूह का नाम रोशन किया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रतन टाटा के जीवन में एक ऐसा मोड़ भी आया जब उन्होंने गुस्से में आकर अपना पूरा दृष्टिकोण बदल डाला और इस गुस्से का परिणाम एक बड़ी सफलता के रूप में सामने आया?
यह घटना 90 के दशक की है जब रतन टाटा की कंपनी, टाटा मोटर्स, अपने पैसेंजर व्हीकल बिजनेस में संघर्ष कर रही थी। 30 दिसंबर 1998 को, टाटा मोटर्स ने अपनी पहली स्वदेशी कार, टाटा इंडिका को बाजार में उतारा। हालांकि, इंडिका को लॉन्च करने के बाद कंपनी की बिक्री उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ी। शुरुआती दिनों में यह कार ज्यादा सफल नहीं रही, और इस वजह से टाटा मोटर्स को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
पैसेंजर व्हीकल बिजनेस को बेचने का विचार
कंपनी की स्थिति को देखते हुए रतन टाटा ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया — अपने पैसेंजर व्हीकल बिजनेस को बेचने का विचार किया। इसके लिए उन्होंने अमेरिका की प्रतिष्ठित कार कंपनी फोर्ड मोटर्स से बातचीत शुरू की। रतन टाटा और फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड के बीच एक महत्वपूर्ण मीटिंग हुई, जो टाटा मोटर्स के भविष्य के लिए निर्णायक साबित होने वाली थी।
बिल फोर्ड ने रतन टाटा का उड़ाया मजाक
बैठक के दौरान, बिल फोर्ड ने रतन टाटा का मजाक उड़ाते हुए उनसे कहा कि अगर उन्हें कार इंडस्ट्री के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, तो फिर उन्होंने इस बिजनेस को शुरू ही क्यों किया? इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि अगर फोर्ड इस बिजनेस को खरीदता है तो यह उनके लिए एक "अहसान" होगा। यह बातें रतन टाटा के लिए बेहद अपमानजनक और गुस्सा दिलाने वाली थीं। टाटा ने यह सब सुना, लेकिन उन्होंने अपना गुस्सा सार्वजनिक नहीं किया। उनकी शांतिपूर्ण प्रतिक्रिया ने एक बड़ी बात को जन्म दिया। उन्होंने तय किया कि वह किसी भी हालत में फोर्ड को यह बिजनेस नहीं बेचेंगे और इसके बजाय खुद इसे सफल बनाने के लिए मेहनत करेंगे।
गुस्से से जुनून तक का सफर
रतन टाटा ने अपनी पूरी ऊर्जा और ध्यान टाटा मोटर्स को बुलंदियों पर पहुंचाने में लगा दिया। उनका मानना था कि भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर को एक नया आकार और दिशा देने का यह सही समय है। उन्होंने टाटा मोटर्स की दिशा को नया मोड़ दिया और साथ ही अपने आंतरिक प्रयासों को तेज कर दिया। रतन टाटा का गुस्सा अब एक सशक्त जुनून में बदल चुका था। कुछ सालों में, टाटा मोटर्स ने महत्वपूर्ण बदलाव किए और इंडिका समेत अन्य कारों की डिज़ाइन और निर्माण में सुधार किया। कंपनी ने नई कारों के लॉन्च से लेकर उत्पादन क्षमता को बढ़ाया, और टाटा मोटर्स धीरे-धीरे भारतीय बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करने लगी।
टाटा मोटर्स भारतीय ऑटो इंडस्ट्री की प्रमुख कंपनी
नौ साल बाद, रतन टाटा का सपना सच हो गया। टाटा मोटर्स अब भारतीय ऑटो इंडस्ट्री की एक प्रमुख कंपनी बन चुकी थी। दूसरी ओर, फोर्ड मोटर्स की हालत काफी खराब हो गई थी। 2008 के दौर में, फोर्ड के व्यवसाय में गिरावट आ रही थी और उसे कई वित्तीय संकटों का सामना करना पड़ रहा था। इसी दौरान रतन टाटा ने एक नया कदम उठाया। रतन टाटा ने फोर्ड से बातचीत करते हुए जगुआर और लैंड रोवर जैसे प्रतिष्ठित ब्रांड्स को खरीदने का प्रस्ताव दिया। यह टाटा मोटर्स के लिए एक बड़ा मौका था, और उन्होंने इसे एक रणनीतिक कदम के रूप में लिया। अब वही बिल फोर्ड, जिन्होंने कभी रतन टाटा का मजाक उड़ाया था, उनके सामने एक नई स्थिति में थे।
बिल फोर्ड का बदल गया था सुर
रतन टाटा और बिल फोर्ड के बीच एक और बैठक हुई, लेकिन इस बार दृश्य पूरी तरह से बदल चुका था। बिल फोर्ड का दृष्टिकोण अब पूरी तरह से बदल चुका था। उन्होंने रतन टाटा से कहा, "आप हमारे ऊपर उपकार कर रहे हैं, क्योंकि आप जगुआर और लैंड रोवर को खरीदकर हमें बचा रहे हैं।" इस तरह रतन टाटा का गुस्सा, जुनून और मेहनत अब सफलता के रूप में सामने आया। 2008 में, टाटा मोटर्स ने जगुआर और लैंड रोवर को फोर्ड से खरीदा, जो टाटा के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ। इस फैसले ने न केवल टाटा मोटर्स को अंतरराष्ट्रीय बाजार में नई पहचान दी, बल्कि रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह की ताकत को और भी मजबूत किया।
यह कहानी बताती है कि कभी-कभी गुस्सा और अपमान भी किसी बड़े बदलाव का कारण बन सकते हैं। रतन टाटा ने अपने गुस्से को अपनी प्रेरणा और जुनून में बदला और टाटा मोटर्स को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी यह यात्रा यह भी साबित करती है कि अगर किसी का इरादा मजबूत हो, तो वह किसी भी मुश्किल का सामना कर सकता है और अपनी मेहनत से सफलता पा सकता है।