Edited By Yaspal,Updated: 23 May, 2019 05:22 AM
भारत की संसद; लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति से मिलकर बनती है. देश में लोकसभा के लिए अधिकतम 552 सदस्य (530 राज्य + 20 केंद्र शासित प्रदेश + 2 एंग्लो इंडियन) हो सकते हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लोकसभा...
नई दिल्लीः भारत की संसद; लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति से मिलकर बनती है। देश में लोकसभा के लिए अधिकतम 552 सदस्य (530 राज्य + 20 केंद्र शासित प्रदेश + 2 एंग्लो इंडियन) हो सकते हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लोकसभा के लिए केवल 543 सदस्य चुने जाते हैं और यदि चुने गए 543 सांसदों में एंग्लो इंडियन समुदाय (Anglo Indian Parliament) का कोई सदस्य नहीं चुना जाता है तब भारत का राष्ट्रपति इस समुदाय के 2 सदस्यों का चुनाव कर सकता है।
एंग्लो इंडियन किन्हें कहा जाता है
संविधान के अनुच्छेद 366 (2) के तहत एंग्लो इंडियन ऐसे किसी व्यक्ति को माना जाता है, जो भारत में रहता हो और जिसका पिता या कोई पुरुष पूर्वज यूरोपियन वंश के हों। यह शब्द मुख्य रूप से ब्रिटिश लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो कि भारत में काम कर रहे हों और भारतीय मूल के हों।
लोकसभा और राज्य विधान सभाओं में एंग्लो-इंडियन के लिए सीटों का आरक्षण
एंग्लो-इंडियन एकमात्र समुदाय है जिसके प्रतिनिधि लोकसभा के लिए नामित होते हैं क्योंकि इस समुदाय का अपना कोई निर्वाचन क्षेत्र नहीं है। यह अधिकार फ्रैंक एंथोनी ने जवाहरलाल नेहरू से हासिल किया था। एंग्लो-इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व लोकसभा में दो सदस्यों द्वारा किया जाता
अनुच्छेद 331 के तहत राष्ट्रपति लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के दो सदस्य नियुक्त करते हैं. इसी प्रकार विधान सभा में अनुच्छेद 333 के तहत राज्यपाल को यह अधिकार है कि (यदि विधानसभा में कोई एंग्लो इंडियन चुनाव नहीं जीता है) वह 1 एंग्लो इंडियन को सदन में चुनकर भेज सकता है।
बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, झारखंड, उत्तराखंड और केरल जैसे राज्यों में विधान सभा के लिए "एंग्लो इंडियन समुदाय का" एक-एक सदस्य नामित है. जबकि वर्तमान में लोकसभा में 2 सदस्य भारतीय जनता पार्टी की तरफ से नामित हैं इनके नाम नीचे लिस्ट में हैं।
संविधान की 10वीं अनुसूची के मुताबिक कोई एंग्लो इंडियन सदन में मनोनीत होने के 6 महीने के अंदर किसी पार्टी की सदस्यता ले सकते हैं। सदस्यता लेने के बाद वो सदस्य पार्टी व्हिप से बंध जाते हैं और उन्हें पार्टी के मुताबिक सदन में काम करना पड़ता है।