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जानिए कौन हैं लाल जी टंडन, कैसे तय किया राजभवन तक का सफर

Edited By Yaspal,Updated: 22 Aug, 2018 05:34 AM

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केंद्र सरकार के अनुरोध पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज कई राज्यों के राज्यपाल का फेरबदल किया है तो कई नए राज्यपालों को भी मनोनीत किया है।

नेशनल डेस्कः केंद्र सरकार के अनुरोध पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज कई राज्यों के राज्यपाल का फेरबदल किया है तो कई नए राज्यपालों को भी मनोनीत किया है। इनमें से ही एक नाम है लाल जी टंडन, जिन्हें बिहार का राज्यपाल मनोनीत किया गया है। राजनीति में सभासद से संसद तक का सफर तय करने वाले लालजी टंडन के जीवन पर दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का बेहद असर रहा है। वे खुद कहते हैं कि अटल जी उनके साथी, भाई और पिता रहे। अटल जी के साथ उनका साथ करीब 5 दशकों का रहा। इतना लंबा साथ अटल का शायद कभी किसी के साथ रहा हो।

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राज्यपाल मनोनीत होने के बाद लालजी टंडन ने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन पर विश्वास जताया है। उन्होंने कहा कि वह बिहार के विकास में योगदान देने की कोशिश करेंगे। राज्य के अभिभावक की भूमिका में वह रहेंगे। लालजी ने कहा कि वह नीतीश कुमार उनके पुराने मित्र रहे हैं। उन्हें नहीं लगता कि हम दोनों के बीच कोई परेशानी आएगी।

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लखनऊ में जन्में लालजी टंडन का 1958 में शादी के बंधन में बंध गए। स्नातक उन्होंने शिक्षा हासिल की है। उनके पुत्र गोपाल जी टंडन इस वक्त उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री हैं। वे अपने शुरूआती जीवन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े। इसी दौरान वह दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपर्क में आए। इसके बाद उनका करीब 5 दशकों तक अटल बिहारी वाजपेयी के साथ संबंध कायम रहा। पिछले दिनों अटल जी के देहांत पर लाल जी काफी परेशान रहे। लखनऊ की सड़कों पर अटल और लाल जी टंडन के साथ तमाम किस्से लोगों की जुंबा पर रहते हैं।

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सभासद से संसद और अब राजभवन का सफर तय करने वाले लालजी टंडन ने उत्तर प्रदेस की राजनीति में कई अहम प्रयोग भी किए। 90 के दशक में प्रदेस में बीजेपी और बसपा गठबंधन की सरकार बनाने में भी उनका अहम योगदान माना जाता है। बसपा सुप्रीमो मायावती को उन्होंने बहन माना और खुद मायावती ने लालजी को राखी बांधी। 1978 से 1984 तक और 1990 से 1996 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। इस दौरान 1991-92 की यूपी सरकार में वह वित्त मंत्री भी रहे। इसके बाद वह 1996 से 2009 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1997 में वह नगर विकास मंत्री रहे। यूपी विधासभा में वह विपक्ष के नेता भी रहे।

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2009 में जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति से दूर हुए और उनकी ऐतिहासिक लखनऊ लोकसभा सीट खाली हुई तो लालजी टंडन को ही बीजेपी ने उनका उत्तराधिकार सौंपा। उन्होंने ये चुनाव आसानी से जीता और लोकसभा में पहुंचे। पूर्व बीजेपी सांसद लालजी टंडन ने अपनी किताब ‘अनकहा लखनऊ’ में कई खुलासे किए। इसमें उन्होंने लिखा कि पुराना लखनऊ के लक्ष्मण टीले के पास बसे होने की बात कही। टंडन के मुताबिक, लक्ष्मण टीला का नाम पूरी तरह से मिटा दिया गया है। अब यह स्थान टीले वाली मस्जिद के नाम से जाना जा रहा है। उनके अनुसार, लखनऊ की संस्कृति के साथ भी जबरदस्ती हुई है।

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अपनी किताब में टंडन ने पार्षद से लेकर कैबिनेट मंत्री और दो बार सांसद तक का 8 दशक से अधिक का सामाजिक एवं सियासी सफर दर्ज किया है। लालजी के मुताबिक, लखनऊ पौराणिक इतिहास को नकार ‘नवाबी कल्चर’ में कैद करने की कुचेष्टा के कारण यह हुआ। लक्ष्मण टीले में शेष गुफा थी, जहां बड़ा मेला लगता था। खिलजी के वक्त यह गुफा ध्वस्त की गई। बार-बार इसे ध्वस्त किया जाता रहा और यह जगह टीले में बदल गई। बाद में औरंगजेब ने यहां एक मस्जिद बनवा दी

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