Edited By Mahima,Updated: 04 Dec, 2024 05:40 PM
कोर्नेलिया सोराबजी, भारत और ब्रिटेन में कानून की प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से शिक्षा ली और ऑक्सफ़ोर्ड में कानून की पढ़ाई की। भारत लौटकर उन्होंने महिलाओं और पर्दानशीं महिलाओं के लिए कानूनी सहायता दी। उनका...
नेशनल डेस्क: कोर्नेलिया सोराबजी, जिन्हें "मदर ऑफ ऑल वुमन एडवोकेट्स इन द वर्ल्ड" के रूप में सम्मानित किया जाता है, भारतीय और ब्रिटिश कानून के क्षेत्र में पहली महिला अधिवक्ता थीं। उनका जीवन न केवल कानूनी पेशे में महिलाओं के लिए एक मील का पत्थर था, बल्कि उन्होंने अपने संघर्षों और कड़ी मेहनत से महिलाओं को कानूनी अधिकारों से जोड़ने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भी, उनकी जीवन गाथा कानूनी पेशे में महिलाओं की अग्रणी पंक्ति के रूप में याद की जाती है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कोर्नेलिया सोराबजी का जन्म 1866 में नाशिक, महाराष्ट्र में हुआ था। उस समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था, और कोर्नेलिया के माता-पिता पारसी थे, लेकिन बाद में उन्होंने ईसाई धर्म अपनाया। सोराबजी के माता-पिता का मानना था कि उनकी सफलता का मार्ग इंग्लैंड से होकर ही जाएगा। इस विचार से प्रेरित होकर, कोर्नेलिया को शिक्षा के लिए एक नए रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया गया।कोर्नेलिया ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बॉम्बे विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वह इस विश्वविद्यालय में दाखिला लेने वाली पहली महिला बनीं, और यहां उन्होंने अपनी शिक्षा में बेहतरीन प्रदर्शन किया। इसके बाद, उन्होंने इंग्लैंड में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कॉलरशिप प्राप्त की और ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई शुरू की।
ऑक्सफ़ोर्ड में संघर्ष और सफलता
कोर्नेलिया सोराबजी को ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने के दौरान कई सामाजिक और शैक्षिक बाधाओं का सामना करना पड़ा। उस समय, महिलाओं को विश्वविद्यालय में पुरुषों के बराबर अवसर नहीं मिलते थे। हालांकि, सोराबजी ने अपने समय के भेदभावपूर्ण माहौल के खिलाफ आवाज उठाई। एक महिला होने के कारण उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में बैचलर ऑफ सिविल लॉ (BCL) की अंतिम परीक्षा में पुरुषों के साथ बैठने की अनुमति नहीं दी गई थी, लेकिन उन्होंने इस भेदभाव को चुनौती दी। उनकी निरंतरता और संघर्ष के बाद, 1892 में विश्वविद्यालय ने अपने नियमों में बदलाव किया और उन्हें परीक्षा देने की अनुमति दी। इस प्रकार, वह ब्रिटेन में यह परीक्षा देने वाली पहली महिला बनीं।
भारत लौटने के बाद कानूनी पेशे में कदम
भारत लौटने के बाद, सोराबजी ने महिलाओं और पारंपरिक भारतीय समाज में पर्दानशीं महिलाओं के लिए कानूनी सहायता प्रदान करने का कार्य शुरू किया। उस समय भारतीय समाज में महिलाओं के कानूनी अधिकारों की स्थिति बेहद कमजोर थी। कोई महिला अधिवक्ता नहीं थी, और महिलाएं कानूनी मामलों में मदद के लिए पुरुषों पर निर्भर रहती थीं। सोराबजी ने काठियावाड़ और इंदौर के शासकों से विशेष अनुमति प्राप्त की और पर्दानशीं महिलाओं के लिए कानूनी सेवाएं प्रदान कीं।
महिला अधिवक्ताओं के लिए रास्ता खोलने का संघर्ष
1897 में सोराबजी ने बॉम्बे विश्वविद्यालय की एलएलबी परीक्षा दी और 1899 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकील बनने के लिए परीक्षा दी, लेकिन उस समय भारत में महिलाओं के लिए कानूनी पेशे में प्रवेश की कोई व्यवस्था नहीं थी। 1924 में महिलाओं के लिए कानूनी पेशे को खोलने का ऐतिहासिक कदम उठाया गया, लेकिन सोराबजी ने कोलकाता में कानूनी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। हालांकि, उन्हें इस समय पुरुषों के पूर्वाग्रह और भेदभाव का सामना करना पड़ा, और उन्हें केवल राय देने तक सीमित रखा गया, उन्हें अदालत में पेश होने की अनुमति नहीं थी।
महिलाओं और नाबालिगों के अधिकारों के लिए संघर्ष
सोराबजी ने अपने पूरे करियर में महिलाओं और नाबालिगों के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष किया। 1902 में, उन्होंने प्रांतीय न्यायालयों में महिलाओं और नाबालिगों के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व के लिए महिला कानूनी सलाहकार की नियुक्ति की याचिका दायर की। इसके बाद 1904 में बंगाल की कोर्ट ऑफ वार्ड में महिला असिस्टेंट की नियुक्ति की गई। इसके साथ ही 1907 में, सोराबजी ने बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम जैसे प्रांतों में महिलाओं के लिए कानूनी सेवाएं प्रदान करना शुरू किया।
600 से अधिक महिलाओं को कानूनी सहायता
सोराबजी ने अपने 20 साल के लंबे करियर में 600 से अधिक महिलाओं और अनाथों को कानूनी सहायता प्रदान की। उन्होंने कई बार अपनी सेवाएं मुफ्त में दीं, ताकि उन महिलाओं की आवाज उठाई जा सके जिन्हें कानूनी सहायता की आवश्यकता थी। उनका यह कार्य न केवल महिलाओं के लिए, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों के लिए भी एक मील का पत्थर था। उनकी मदद से कई महिलाओं को न्याय मिला, और वह कानूनी पेशे में महिलाओं की सफलता के प्रतीक बन गईं।
कोर्नेलिया सोराबजी की विरासत
सोराबजी के संघर्ष और कार्य के परिणामस्वरूप, 1924 में भारत में महिलाओं के लिए कानूनी पेशे को खोला गया। 1929 में, उन्होंने उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त होने के बाद लंदन में बसने का निर्णय लिया, लेकिन वह सर्दियों में भारत आकर रहती थीं। उनका निधन 6 जुलाई 1954 को लंदन में हुआ था। सोराबजी की विरासत आज भी महिलाओं के लिए कानूनी पेशे में एक प्रेरणा है। 2012 में, ब्रिटिश सरकार ने लंदन के लिंकन इन में कोर्नेलिया सोराबजी की एक प्रतिमा का अनावरण किया। यह प्रतिमा उनकी संघर्षों और योगदान को हमेशा याद रखने का एक सम्मान है। उनकी जिंदगानी और उनके योगदान ने न केवल भारतीय बल्कि ब्रिटिश कानूनी पेशे में भी महिलाओं के लिए नए रास्ते खोले।
कोर्नेलिया सोराबजी का जीवन न केवल उनके समय की बाधाओं को चुनौती देने का प्रतीक था, बल्कि वह महिला अधिवक्ताओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनकर उभरीं। उनकी कड़ी मेहनत और संघर्ष ने कानूनी पेशे में महिलाओं के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया। वह भारतीय और ब्रिटिश कानूनी पेशे में महिलाओं की अग्रणी और प्रतीक बनकर हमेशा याद रहेंगी। उनका योगदान महिला अधिकारों और कानूनी पेशे में अमूल्य रहेगा।