Edited By Utsav Singh,Updated: 21 Oct, 2024 07:49 PM
आज का दिन हमारे देश के लिए बहुत खास है, क्योंकि आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादूर सास्त्री का जन्म दिवस मनाया जाता है। हम सभी ने इनकी कई कहानियाँ सुनी हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं गांधी जी के तीन बंदरों की...
नेशनल डेस्क : आज का दिन हमारे देश के लिए बहुत खास है, क्योंकि आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादूर सास्त्री का जन्म दिवस मनाया जाता है। दोनों स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आज़ादी के लिए अद्वितीय योगदान दिया है। हम सभी ने इनकी कई कहानियाँ सुनी हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं गांधी जी के तीन बंदरों की कहानी? अगर नहीं तो आइए जानते है विस्तार से...
90 साल पुरानी है तीन बंदरों की कहानी
गांधी जी के तीन बंदरों की कहानी लगभग 90 साल पहले की है। ये बंदर असली नहीं, बल्कि मूर्तियां हैं, जो गांधी जी को एक खास तोहफे के रूप में मिली थीं। इनकी भेंट जापान के मशहूर बौद्ध भिक्षु निचिदात्सु फूजी ने की थी। निचिदात्सु फूजी का जन्म जापान के एसो काल्डेरा के जंगलों में एक किसान परिवार में हुआ। 19 साल की उम्र में उन्होंने बौद्ध भिक्षु बनने का फैसला किया। 1917 में, फूजी ने मिशनरी गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया। लेकिन 1923 में जापान में आए भूकंप ने उनके जीवन को बदल दिया, और उन्हें वापस लौटना पड़ा। कुछ साल बाद, उन्होंने भारत जाने का निर्णय लिया।
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गांधी जी से पहली मुलाकात
1931 में निचिदात्सु फूजी कलकत्ता पहुंचे और पूरे शहर का दौरा किया। भारत यात्रा के दौरान, उन्होंने महात्मा गांधी से मिलने का मन बनाया और वर्धा स्थित गांधी जी के आश्रम पहुंचे। गांधी जी ने फूजी को देखकर खुशी जताई और आश्रम की प्रार्थना में भी हिस्सा लिया। इस मुलाकात में, फूजी ने गांधी जी को तीन बंदरों की मूर्तियां भेंट की। ये मूर्तियां गांधी जी को इतनी पसंद आईं कि उन्होंने उन्हें अपनी टेबल पर रख लिया। इस तरह, ये मूर्तियां 'गांधी जी के तीन बंदर' के नाम से मशहूर हो गईं।
शांति पगौड़ों की स्थापना
निचिदात्सु फूजी शांति पगौड़ों की स्थापना के लिए भी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में पहले शांति पगौड़े स्थापित किए। ये वही शहर हैं, जहां दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने परमाणु बम गिराए थे, जिससे हजारों नागरिकों की जान गई थी। इस त्रासदी ने फूजी को गहराई से प्रभावित किया, जिसके बाद उन्होंने भारत आने का फैसला किया।
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निचिदात्सु फूजी का निधन
भारत आने के बाद, उन्होंने बिहार के राजगीर में भी एक शांति पगौड़ा बनवाया। यहां एक जापानी मंदिर भी है, जिसमें भगवान बुद्ध की सफेद रंग की खूबसूरत मूर्ति स्थापित है। 9 जनवरी 1986 को निचिदात्सु फूजी का निधन हुआ। उनकी मृत्यु के बाद भी शांति पगौड़ों का निर्माण जारी रहा। 2000 तक, यूरोप, एशिया और अमेरिका में 80 से अधिक शांति पगौड़ों की स्थापना की गई। गांधी जी के तीन बंदर और निचिदात्सु फूजी की कहानी शांति, विनम्रता और मानवता के लिए प्रेरणा देती है। इन मूर्तियों ने न केवल गांधी जी को बल्कि पूरी दुनिया को अहिंसा और शांति का संदेश दिया है।