Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 20 Apr, 2025 05:52 AM
भारत में जब भी जाति, महिला अधिकार या आरएसएस (RSS) पर सवाल उठते हैं, तो एक नाम सबसे पहले सामने आता है—मनुस्मृति। ये वही ग्रंथ है जिसे लेकर देश में बार-बार बहस छिड़ती है और राजनीतिक घमासान मचता है।
नेशनल डेस्क: भारत में जब भी जाति, महिला अधिकार या आरएसएस (RSS) पर सवाल उठते हैं, तो एक नाम सबसे पहले सामने आता है—मनुस्मृति। ये वही ग्रंथ है जिसे लेकर देश में बार-बार बहस छिड़ती है और राजनीतिक घमासान मचता है। कुछ इसे सनातन व्यवस्था का मूल मानते हैं, तो कुछ इसे सामाजिक भेदभाव और शोषण की जड़।
किसने लिखी थी मनुस्मृति?
मनुस्मृति को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही रहता है कि इसे आखिर लिखा किसने था? माना जाता है कि इसे ‘मनु’ नाम के ऋषि ने लिखा था। मनु को हिंदू परंपरा में पहला मानव और पहले शासक के रूप में पूजा जाता है। यही कारण है कि इस किताब को 'मनुस्मृति' यानी 'मनु की स्मृतियां' कहा गया। कुछ इतिहासकार इसे करीब 2000 साल पुरानी मानते हैं जबकि कुछ इसे ईसा पूर्व की रचना बताते हैं।
मनुस्मृति में क्या लिखा है?
इस ग्रंथ में कुल 12 अध्याय हैं और श्लोकों की संख्या 2684 से 2964 के बीच मानी जाती है। हर अध्याय में समाज के एक विशेष पहलू पर चर्चा की गई है:
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पहला अध्याय: प्रकृति, युगों और वर्ण व्यवस्था का जिक्र
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दूसरा अध्याय: ब्रह्मचर्य और शैक्षिक अनुशासन
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तीसरा अध्याय: विवाह, श्राद्ध और रीति-रिवाज
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चौथा अध्याय: गृहस्थ जीवन और खानपान के नियम
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पांचवां अध्याय: महिलाओं के कर्तव्य और नियम
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आठवां अध्याय: न्याय, अपराध और दंड व्यवस्था
क्यों उठते हैं मनुस्मृति पर सवाल?
मनुस्मृति को लेकर सबसे बड़ा विवाद इसमें वर्ण व्यवस्था और महिलाओं के अधिकारों पर लिखी गई बातों को लेकर है। कहा जाता है कि इसमें शूद्रों को शिक्षा का अधिकार नहीं दिया गया और महिलाओं को पुरुषों से कमतर बताया गया। विरोधी कहते हैं कि ये ग्रंथ एकतरफा सामाजिक ढांचे को बढ़ावा देता है जिसमें ब्राह्मणों को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
डॉ. आंबेडकर और मनुस्मृति का विरोध
मनुस्मृति के खिलाफ सबसे बड़ा विरोध डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने किया था। 25 दिसंबर 1927 को उन्होंने महाराष्ट्र के महाड में सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति की प्रतियां जलाई थीं। इसके पीछे उनका मानना था कि यह ग्रंथ जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देता है। आंबेडकर ने इसे ‘गुलामी का दस्तावेज’ बताया था।
क्या कहता है RSS पर आरोप?
कई राजनीतिक पार्टियां, खासकर कांग्रेस और अंबेडकरवादी संगठनों का आरोप है कि आरएसएस और उससे जुड़ी संस्थाएं संविधान के बजाय मनुस्मृति को आदर्श मानती हैं। हालांकि आरएसएस ने कई बार इस बात से इनकार किया है और कहा है कि वे भारतीय संविधान को सर्वोच्च मानते हैं। फिर भी, आरएसएस की विचारधारा और मनुस्मृति के कई पहलुओं में समानता होने का तर्क अकसर सामने आता है।
संविधान बनाम मनुस्मृति: टकराव जारी है
भारत के संविधान और मनुस्मृति की सोच में ज़मीन-आसमान का फर्क है। जहां संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, वहीं मनुस्मृति पर आरोप है कि यह जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देती है। यही कारण है कि आज भी जब भी सामाजिक न्याय या आरक्षण की बात होती है, मनुस्मृति पर बहस छिड़ जाती है।