झारखंड में भाजपा को क्यों मिली करारी शिकस्त, "बंटोगे तो कटोगे" का नारा भी नहीं मोड़ पाया चुनावी रुख !

Edited By Mahima,Updated: 25 Nov, 2024 09:39 AM

why did bjp face a huge defeat in jharkhand even the slogan if you divide

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नेशनल डेस्क: झाारखंड विधानसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी इसके बावजूद उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा का "बंटोगे तो कटोगे" का नारा भी चुनावी रुख को माड़ नहीं पाया। भाजपा के घुसपैठियों को उल्टा लटकाने के वादे भी धराशायी हो गए। नतीजन भाजपा को 2019 के चुनाव के मुकाबले तीन सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा। जानकारों की मानें तो झाारखंड में इंडिया गठबंधन की जीत का सबसे बड़ा कारण हेमंत सौरेन के प्रति सिम्पैथी फैक्टर रहा। हेमंत सोरेन अपने चुनाव प्रचार के दौरान लगातार यह संदेश देने की कोशिश करते रहे कि आदिवासी चेहरे को कुचलने के लिए किस तरह उन्हें गलत तरीके से जेल में डाला गया। इसके अलावा सोरेन सरकार की मंईयां सम्मान योजना भी इंडिया गठबंधन के लिए संजीवनी साबित हुई।  

किसको कितना फायदा और कितना नुकसान
इंडिया गठबंधन अपने गढ़ संथाल परगना और कोल्हान को बचाने में कामयाब रहा. इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा  (जे.एम.एम.) की अगुवाई में इंडिया गठबंधन को 9 सीटों के इजाफे के साथ 56 सीट मिली तो वहीं भाजपा नीत एन.डी.ए. को 6 सीट के नुकसान के साथ महज 24 सीट पर संतोष करना पड़ा। इस बार 7 सीट के फायदे के साथ जे.एम.एम. को 34 सीटें मिलीं, जबकि 3 सीट के लाभ के साथ राष्ट्रीय जनता दल (आर.जे.डी.) चार पर पहुंच गई। कांग्रेस को 2 के नुकसान के साथ 16 सीट मिली। इनके अन्य सहयोगियों के खाते में दो सीट आई हैं।

जे.डी.यू. ने पहली बार जीती एक सीट
वहीं दूसरी तरफ 3 सीट के नुकसान के साथ भाजपा ने 21 जबकि दो के नुकसान के साथ ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू पार्टी) ने एक सीट हासिल की। यहां उल्लेखनीय यह है कि   पहली बार एक सीट जनता दल यूनाइटेड (जे.डी.यू.) के खाते में गई है। इनके अन्य सहयोगियों को भी दो सीट का नुकसान हुआ है उन्हें केवल एक सीट मिली है। पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2019 में झारखंड में जे.एम.एम. को 30, भाजपा को 25, कांग्रेस को 16, झारखंड विकास मोर्चा (जे.वी.एम.) को 3, आजसू को दो और आर.जे.डी. को एक सीट मिली थी।

भाजपा ने हारीं 15 मौजूदा सीटें
झारखंड में भाजपा ने 11 नई सीटों पर जीत हासिल की है, लेकिन 15 मौजूदा विधायकों की सीटें उसने इस चुनाव में गवां दी। हालांकि इसके ठीक उलट जे.एम.एम. ने 30 में से 26 सीट पर कब्जा बरकरार रखा और 8 नई सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस ने 16 में से 11 सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखा, जबकि पांच नई सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा को सबसे अधिक नुकसान छोटानागपुर प्रमंडल की सीटों पर हुआ। संथाल परगना प्रमंडल से भी भाजपा का लगभग सफाया हो गया।

सिम्पैथी फैक्टर और कल्पना सोरेन की भूमिका
जानकारों का कहना है कि हेमंत सोरेन के पक्ष में सिम्पैथी फैक्टर भी काफी प्रभावी रहा। उनके जेल जाने का मुद्दा चुनाव प्रचार में गरमाया रहा और इसके चलते आदिवासी मतदाता  एकजुट होकर उनके पक्ष में खड़े हो गए। एक रिपोर्ट के मुताबिक हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन सामने आईं और जहां-जहां गई, वहां उन्होंने पति के साथ हुई ज्यादती की बात समझाने की कोशिश की। चुनाव प्रचार के दौरान मंईयां सम्मान योजना की राशि दो हजार से बढ़ाकर प्रतिमाह 2,500 रुपये करने का वादा भी सिरे चढ़ गया। कल्पना ने सरना धर्म कोड की भी बात की और यह भी कहा कि भाजपा ने नेता बाहर के हैं, वे हमारी भाषा-संस्कृति तक नहीं जानते। अपने सहज व सरल अंदाज से खासकर महिलाओं को कनेक्ट करने में वे सफल रहीं। वह गांडेय सीट से चुनी गई हैं।

चुनाव से पहले किया था बिजली बिल माफ
रिपोर्ट में राजनीतिक विशेषज्ञ ए.के. चौधरी के हवाले से कहा गया है कि चुनाव के ऐन मौके पर बिजली बिल माफ करना भी जे.एम.एम. के लिए फायदेमंद साबित हुआ। सरकार बनने पर आरक्षण का दायरा बढ़ाने का भी वादा किया गया। चौधरी के अनुसार भाजपा द्वारा 2016 में आदिवासी जमीन की सुरक्षा के लिए बने सीएनटी एक्ट में किया गया बदलाव भी उन पर भारी पड़ा। आदिवासी इसे लेकर आज भी आक्रोश में हैं।
इस संशोधन के बाद जमीन के स्वरूप (नेचर) को बदला जा सकता था। इसे आदिवासियों ने उनकी जमीन छीनने का प्रयास माना गया, जबकि भाजपा ने यह सोचकर ऐसा किया था कि इससे राज्य में उद्योग-धंधे लगाना आसान हो सकेगा।

भाजपा को महंगा पड़ा "बंटोगे तो कटोगे" नारा  
सियासी पंडितों का यह भी मानना है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दिया गया " बंटोगे तो कटोगे" नारा भाजपा को महंगा पड़ गया। यह नारा भाजपा के लिए नुकसानदेह ही साबित हुआ।
जिस संथाल परगना क्षेत्र के लिए यह नारा गढ़ा गया, वहां की 18 सीट में से केवल एक जरमुंडी सीट ही भाजपा जीत पाई। हिंदू वोटरों को एकजुट करने के लिए दिए गए इस नारे ने मुस्लिमों का ध्रुवीकरण कर दिया और उन्होंने एकजुट होकर इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान कर दिया।

किसने कितनी की चुनावी सभाएं
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एन.डी.ए. की तरफ से झारखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह, अमित शाह ने 16, योगी आदित्यनाथ ने 14 सभाएं कीं। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के सी.एम. हिमंत बिस्वा सरमा ने तो झारखंड में तो डेरा ही डाल रखा था। वहीं इंडिया गठबंधन की तरफ से राहुल गांधी की छह सभाओं के अलावा लगभग पूरा चुनाव प्रचार अभियान हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने संभाल रखा था।

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