Edited By Mahima,Updated: 27 Nov, 2024 12:48 PM
महाराष्ट्र की सियासत में एकनाथ शिंदे की भूमिका बेहद अहम हो गई है। 57 सीटें जीतने के बाद, उनका समर्थन बीजेपी के लिए जरूरी है, खासकर मराठा वोट बैंक और मराठा आरक्षण जैसे मुद्दों पर। शिंदे ने गृह मंत्रालय और दो डिप्टी सीएम पद की शर्त रखी है, जिससे उनकी...
नेशनल डेस्क: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद से राज्य की सियासत में हलचल मची हुई है। तीन दिन से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं हुई है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस का नाम सीएम पद के लिए सामने आ रहा है, लेकिन शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की भूमिका को नजरअंदाज करना बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकता है। खासतौर पर तब जब शिंदे ने डिप्टी सीएम का पद ठुकरा दिया है और अपनी शर्तों में गृह मंत्रालय की मांग की है। अगर बीजेपी शिंदे की ये शर्त मानती है, तो यह न केवल राज्य सरकार के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि पूरे महायुति के भविष्य के लिए भी निर्णायक साबित हो सकता है।
शिंदे की भूमिका क्यों है अहम?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिंदे गुट ने मिलकर महायुति बनाई थी। शिंदे गुट को 57 सीटों के साथ एक मजबूत चुनावी प्रदर्शन करने का श्रेय मिला है। अब इस गुट को असली शिवसेना के रूप में पहचाना जा रहा है। अगर शिंदे महायुति से अलग हो जाते हैं, तो इसका सीधे तौर पर प्रभाव बीजेपी पर पड़ेगा। विपक्ष को यह मुद्दा मिल जाएगा कि बीजेपी ने महज सत्ता में वापसी के लिए शिंदे का इस्तेमाल किया, लेकिन चुनाव के बाद उन्हें दरकिनार कर दिया। इससे न सिर्फ बीजेपी की छवि पर सवाल उठेंगे, बल्कि मराठा समुदाय के बीच भी बीजेपी की स्थिति कमजोर हो सकती है।
शिंदे के बिना महायुति का अस्तित्व खतरे में
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एकनाथ शिंदे महायुति का सबसे बड़ा मराठी चेहरा हैं। वे मराठा समुदाय से जुड़े नेताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। शिंदे का साथ बनाए रखना महायुति के लिए जरूरी है, क्योंकि इसके जरिए बीजेपी मराठा वोट बैंक को अपने पक्ष में रख सकती है। साथ ही, मराठा आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बीजेपी को शिंदे का समर्थन हासिल होगा, जो उन्हें राजनीतिक रूप से मजबूत करेगा। शिंदे के बिना बीजेपी के लिए राज्य की सियासत में संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि उनकी जनाधार और राजनीतिक स्थिति काफी प्रभावशाली है।
BMC का विवाद: शिंदे का साथ क्यों जरूरी?
मुंबई का बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) देश की सबसे अमीर नगर पालिकाओं में गिना जाता है। पिछले 25 सालों से यह BMC शिवसेना के नियंत्रण में था, लेकिन अब शिवसेना के विभाजन के बाद से उद्धव गुट के पास BMC का नियंत्रण है। बीजेपी के लिए BMC पर कब्जा करना राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, और इसके लिए शिंदे का समर्थन जरूरी हो सकता है। शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के बागी नेताओं ने महाराष्ट्र में कई प्रमुख क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाई है। यदि शिंदे का साथ बीजेपी को मिल जाता है, तो यह उनके लिए BMC की लड़ाई में एक गेमचेंजर साबित हो सकता है।
विपक्ष को मिल सकता है बड़ा मुद्दा
अगर बीजेपी शिंदे की शर्तों को न मानते हुए उन्हें महायुति से बाहर करती है, तो विपक्षी दलों के पास एक बड़ा मुद्दा होगा। वे इस बात को उठाकर बीजेपी को घेरने की कोशिश करेंगे कि बीजेपी ने शिंदे को केवल चुनावी फायदे के लिए इस्तेमाल किया और बाद में उन्हें साइडलाइन कर दिया। इससे बीजेपी की छवि पर नकारात्मक असर पड़ेगा और विपक्ष महायुति के भीतर की दरार को प्रमुख मुद्दा बना सकता है। इसके अलावा, इस राजनीतिक उथल-पुथल से राज्य की राजनीति में और भी अस्थिरता फैल सकती है। महाराष्ट्र में तोड़-फोड़ की राजनीति का दौर शुरू हो सकता है, जो राज्य की सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकता है।
बीजेपी के लिए रणनीतिक निर्णय
अब सवाल यह है कि क्या बीजेपी शिंदे की शर्तों को मानने के लिए तैयार होगी? शिंदे ने डिप्टी सीएम बनने के बदले गृह मंत्रालय की मांग की है, जो एक महत्वपूर्ण विभाग है। अगर बीजेपी शिंदे की शर्तें मानती है, तो सरकार में बदलाव हो सकता है और तीन डिप्टी सीएम की नियुक्ति की स्थिति बन सकती है। यह सब बीजेपी की रणनीति और शिंदे के राजनीतिक महत्व पर निर्भर करेगा। बीजेपी को यह समझने की जरूरत है कि शिंदे का समर्थन उनके लिए केवल राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए ही नहीं, बल्कि राज्य के भीतर एक मजबूत मराठी आधार बनाने के लिए भी आवश्यक है। अगर शिंदे को मनाने में बीजेपी विफल रहती है, तो यह न सिर्फ राज्य में उनकी सरकार को चुनौती दे सकता है, बल्कि पार्टी की केंद्रीय स्थिति को भी कमजोर कर सकता है।
महाराष्ट्र की राजनीति में एकनाथ शिंदे की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गई है। उनका समर्थन महायुति के लिए अति आवश्यक है, क्योंकि वे न केवल मराठा समुदाय के लिए एक मजबूत आवाज हैं, बल्कि BMC और महाराष्ट्र सरकार की सियासी दिशा भी उनके हाथों में है। बीजेपी को यह तय करना होगा कि शिंदे की शर्तों को मानकर क्या वह उन्हें अपनी पार्टी में शामिल रखेगी, या फिर उन्हें साइडलाइन करके अपना रास्ता अलग करेगी। आने वाले दिनों में यह स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि क्या शिंदे महायुति के साथ बने रहेंगे या सत्ता के इस संघर्ष में वे अपने रास्ते अलग कर लेंगे।