Edited By Tanuja,Updated: 24 Nov, 2024 09:53 AM
भारतीय यात्रियों के लिए यूरोप के 29 देशों का शेनजेन वीजा प्राप्त करना दिनों-दिन जटिल होता जा रहा है। 2013 से 2023 के बीच शेनजेन जोन में वीसा अर्जियों के रद्द होने की दर 5% से बढ़कर 16% हो गई ...
International Desk: भारतीय यात्रियों के लिए यूरोप के 29 देशों का शेनजेन वीजा प्राप्त करना दिनों-दिन जटिल होता जा रहा है। 2013 से 2023 के बीच शेनजेन जोन में वीसा अर्जियों के रद्द होने की दर 5% से बढ़कर 16% हो गई है। इस बढ़ती कठिनाई के कारण भारतीय यात्रियों को यात्रा योजनाओं में कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। शेनजेन वीजा के लिए सामान्य फीस ₹6000 है, लेकिन भारतीयों को अतिरिक्त ₹1900 चुकाने पड़ते हैं। जबकि ब्रिटिश वीजा ₹12,700 और अमेरिकी वीसा ₹15,600 में मिलता है। विशेष सुविधाओं, जैसे लाउंज या ऑफ-ऑवर आवेदन, के लिए अतिरिक्त ₹2500-₹16,000 तक का खर्च होता है।
वीजा प्रक्रिया का लगभग 40% हिस्सा प्राइवेट कंपनियों के जरिए आउटसोर्स किया जाता है। वीएफएस ग्लोबल, टीएलएस कॉन्टैक्ट और बीएलएस इंटरनेशनल जैसी कंपनियों का इस क्षेत्र में 70% नियंत्रण है। इन्वेस्टमेंट फर्म नुवामा ग्रुप के अनुसार, वीसा आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री हर साल 9% की दर से बढ़ रही है और 2030 तक इसका मूल्य ₹42,000 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। यूरोप जाने वाले यात्रियों को बैंक स्टेटमेंट, पे स्लिप, टैक्स रिटर्न जैसी कई दस्तावेज़ी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। आवेदन के बाद भी कई बार अर्जियां अस्वीकृत हो जाती हैं, जिससे समय और धन दोनों की बर्बादी होती है। खास बात यह है कि यूरोप जाने के लिए अमीर देशों के लिए वीजा में छूट है लेकिन विकासशील देशों पर बोझ डाला गयाहै।
अमीर देशों के नागरिकों को कई देशों में वीजा की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन भारतीय जैसे विकासशील देशों के यात्रियों को भारी फीस और लंबी प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है। 2023 में यूरोपीय संघ ने वीजा फीस से ₹7600 करोड़ की कमाई की। इस बढ़ती आय के साथ वीजा प्रक्रिया अब केवल यात्रा अनुमति नहीं, बल्कि सरकारी राजस्व का अहम हिस्सा बन गई है। वीजा की लंबी प्रक्रिया और कड़े नियम भारत से विदेश यात्रा को और कठिन बना रहे हैं। भारतीय यात्रियों के लिए यूरोपीय और अमेरिकी वीसा प्रक्रिया में आने वाली ये कठिनाइयां न केवल यात्रा योजनाओं को प्रभावित करती हैं, बल्कि समय और धन की बर्बादी भी बढ़ाती हैं। सरकारों और आउटसोर्सिंग कंपनियों के लिए यह आय का साधन बन चुका है, लेकिन यात्रियों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।