Edited By Mahima,Updated: 04 Sep, 2024 10:07 AM
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पारिवारिक मामलों में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि पत्नी अपने पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करती है और उसके साथ रहने से इनकार करती है, तो यह स्थिति क्रूरता के समान मानी...
नेशनल डेस्क: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पारिवारिक मामलों में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि पत्नी अपने पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करती है और उसके साथ रहने से इनकार करती है, तो यह स्थिति क्रूरता के समान मानी जा सकती है। इस निर्णय के साथ ही हाईकोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी को मंजूर कर लिया है। इस मामले में पति ने कोर्ट से कहा कि उसकी पत्नी ने उसे एक अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर किया। पत्नी का यह भी कहना था कि यदि पति उसके कमरे में जाएगा, तो वह आत्महत्या कर लेगी। यह स्थिति पति के लिए मानसिक उत्पीड़न का कारण बन गई थी। न्यायमूर्ति राजन राय और सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने लखनऊ में इस पारिवारिक मामले की अपील पर सुनवाई की और पति के पक्ष में फैसला सुनाया।
फैमिली कोर्ट का पूर्व निर्णय
पति ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। पारिवारिक न्यायालय ने पहले पति के खिलाफ निर्णय सुनाया था। फैमिली कोर्ट ने यह तर्क दिया कि पत्नी ने तब वैवाहिक संबंध समाप्त कर दिए थे, जब उसने पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी का यह व्यवहार चाहे घर के भीतर हो या बाहर, इसका असर पति पर पड़ता है।
विवाह और तलाक की प्रक्रिया
इस मामले में पति और पत्नी का विवाह 2016 में हुआ था। पत्नी की यह पहली शादी थी, जबकि पति की दूसरी शादी थी। पति ने 2018 में फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की थी। उसने कहा था कि विवाह के पहले 5-6 महीनों के दौरान सब कुछ सामान्य था, लेकिन उसके बाद पत्नी का व्यवहार बदल गया और उसने उसे परेशान करना शुरू कर दिया। जनवरी 2023 में फैमिली कोर्ट ने पति के खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा था कि उसने पत्नी की धमकियों का विस्तार से उल्लेख तलाक की अर्जी में नहीं किया था। पति ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी।
हाईकोर्ट ने पत्नी के व्यवहार को क्रूरता मानते हुए तलाक की अर्जी को मान्यता दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय पारिवारिक विवादों के मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल पेश करता है। कोर्ट ने पत्नी के व्यवहार को क्रूरता की श्रेणी में रखा है और पति के तलाक की अर्जी को मंजूर कर लिया है। इस फैसले से पारिवारिक मामलों में न्याय की दिशा में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है, जो भविष्य में समान परिस्थितियों में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।