चुनावी बॉन्ड की क्या SIT करेगी जांच, 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

Edited By Rahul Rana,Updated: 19 Jul, 2024 03:58 PM

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कॉरपोरेट और राजनीतिक दलों के बीच चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदे के कथित मामलों की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांग को लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की इस मामले की सुनवाई...

नेशनल डेस्क : कॉरपोरेट और राजनीतिक दलों के बीच चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदे के कथित मामलों की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांग को लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की इस मामले की सुनवाई सोमवार 22 जुलाई को करेगी। क्योंकि अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मामले की जल्द सुनवाई का अनुरोध किया था। 

22 जुलाई को होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
एनजीओ कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों के वित्तपोषण के स्रोत (Sources of Funding) की जांच अधिकारियों द्वारा करवाई जाएं। जैसा कि चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों से पता चला है याचिका में अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे राजनीतिक दलों से वह राशि वसूल करें जो कंपनियों द्वारा इन दलों को बदले में दी गई है, क्योंकि यह अपराध की आय है।

SIT जांच की मांग क्यों की जा रही
इसमें ये आरोप लगाया गया है कि चुनावी बॉन्ड में करोड़ों रुपए का घाटा हुआ है जिसे उजागर करना बहुत जरूरी है। औऱ ये केवल सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में स्वतंत्र जांच के जरिए ही किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग करते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा, "इस मामले की जांच में न केवल प्रत्येक मामले में पूरी साजिश को उजागर करने की जरूरत होगी, जिसमें कंपनी के अधिकारी, सरकार के अधिकारी और राजनीतिक दलों के पदाधिकारी शामिल होंगे, बल्कि ईडी/आईटी और सीबीआई आदि जैसी एजेंसियों के संबंधित अधिकारी भी शामिल होंगे, जो इस साजिश का हिस्सा प्रतीत होते हैं।

अज्ञात चुनावी बॉन्ड को लेकर क्या कहा गया
याचिका में ये आरोप लगाया गया है कि सर्वोच्च अदालत द्वारा जो अज्ञात बॉन्ड रद्द करके सार्वजनिक किया गया था उससे ये पता चलता है कि अधिकांश बॉन्ड कॉरपोरेट्स द्वारा राजनीतिक दलों को दिए जाते हैं ताकि वे सरकारी अनुबंध या लाइसेंस प्राप्त कर सकें, सीबीआई, आयकर विभाग, या प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच से सुरक्षा पा सकें या अनुकूल नीति परिवर्तनों के लिए समर्थन हासिल कर सकें।

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 का उल्लंघन
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कई फार्मा कंपनियां, जो घटिया दवाओं के निर्माण के लिए विनियामक जांच के दायरे में थीं, उसने भी चुनावी बॉन्ड खरीदे जिससे उन्हें कानूनी जांच से छूट मिल सके इसमें कहा गया है कि इस तरह के लेन-देन भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 का स्पष्ट उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फरवरी के फैसले में चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था, जिसके तहत राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीके से धन दिया जा सकता था, और एसबीआई को तुरंत चुनावी बॉन्ड जारी करना बंद करने का आदेश दिया था। इसने चुनावी बॉन्ड योजना के साथ-साथ आयकर अधिनियम और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को सर्वसम्मति से रद्द कर दिया था, जिसके तहत दान को गुमनाम बना दिया गया था।

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