Edited By Mahima,Updated: 19 Oct, 2024 03:58 PM
कर्नाटक सरकार ने स्विगी, जोमैटो, ओला और उबर जैसी कंपनियों पर गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए 1-2% वेलफेयर शुल्क लगाने की योजना बनाई है। यह शुल्क ट्रांसपोर्ट सेवाओं पर लागू होगा, लेकिन संभावना है कि कंपनियां इसे ग्राहकों पर डालेंगी। इस कदम का उद्देश्य...
नेशनल डेस्क: कर्नाटक सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें स्विगी, जोमैटो, ओला, और उबर जैसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कंपनियों पर एक नया वेलफेयर शुल्क लगाने की योजना बनाई है। यह शुल्क गिग वर्कर्स जैसे डिलीवरी और कैब ड्राइवरों—की सामाजिक सुरक्षा और कल्याण के लिए एक विशेष फंड बनाने के उद्देश्य से लगाया जाएगा। यह निर्णय गिग वर्कर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।
क्या है वेलफेयर शुल्क?
कर्नाटक सरकार ने यह शुल्क इन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर होने वाले लेन-देन पर 1-2% के रूप में लगाने की योजना बनाई है। इसका उपयोग गिग वर्कर्स के कल्याण के लिए एक विशेष फंड में किया जाएगा। सरकार का कहना है कि यह फंड गिग वर्कर्स की बेहतर सुरक्षा और सुविधाओं के लिए काम करेगा, जो आमतौर पर अनॉर्गनाइज़्ड सेक्टर में काम करते हैं। यह शुल्क केवल ट्रांसपोर्टेशन सेवाओं पर लागू होगा, मतलब यह उन ग्राहकों पर नहीं लगेगा जो खाने या अन्य सामान की डिलीवरी के लिए भुगतान कर रहे हैं।
ग्राहकों पर प्रभाव
हालांकि, यह संभावना है कि कंपनियां अंततः इस शुल्क का बोझ ग्राहकों पर डाल सकती हैं, जिससे सेवाओं की कीमत थोड़ी बढ़ सकती है। इससे ग्राहकों को शायद उच्च दरों का सामना करना पड़े। लेकिन, इसके पीछे सरकार का मुख्य उद्देश्य गिग वर्कर्स के लिए एक स्थायी सामाजिक सुरक्षा योजना लागू करना है।
गिग वर्कर्स की स्थिति
गिग वर्कर्स के पास अक्सर स्थायी नौकरी की सुरक्षा नहीं होती। उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और अन्य सुरक्षा लाभों की कमी। यह वेलफेयर शुल्क और उसके बाद की योजनाएं इस समस्या का समाधान करने का एक प्रयास हैं। कर्नाटक सरकार का मानना है कि इससे गिग वर्कर्स को बेहतर सुरक्षा, नौकरी के लाभ, और उनके काम करने की स्थिति में सुधार होगा।
विधेयक का प्रस्ताव
इस वेलफेयर शुल्क के साथ, कर्नाटक सरकार एक नया विधेयक भी लाने की योजना बना रही है, जिसका शीर्षक है "प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स (सामाजिक सुरक्षा और कल्याण) विधेयक, 2024"। यह विधेयक दिसंबर में विधानसभा के विंटर सेशन के दौरान पेश होने की उम्मीद है। इस विधेयक का उद्देश्य गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है, जिससे उनकी जीवन स्थितियों में सुधार किया जा सके।
स्टेकहोल्डर्स के साथ संवाद
कर्नाटक सरकार ने इस नए शुल्क और विधेयक को तैयार करने के लिए 32 दौर की बैठकें आयोजित की हैं। इन बैठकों में लगभग 26 एग्रीगेटर कंपनियों के प्रतिनिधि, गिग वर्कर्स यूनियंस, नागरिक समाज समूह, और वकीलों के साथ विचार-विमर्श किया गया। सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के साथ-साथ नासकॉम (नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज) और CII (कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) जैसे संगठनों के साथ भी चर्चा की।
कंपनियों पर असर
यह नया शुल्क उन कंपनियों पर वित्तीय बोझ डालेगा, जिन्हें इसे अपने संचालन में शामिल करना होगा। इससे कंपनियों की लागत बढ़ेगी और वे अपने ग्राहकों पर अतिरिक्त शुल्क डाल सकती हैं। यह कदम उद्योग के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप गिग वर्कर्स को एक दीर्घकालिक सुरक्षा कवच मिल सकता है, जो उनके काम को अधिक सुरक्षित बनाएगा। अगर यह योजना सफल होती है, तो गिग वर्कर्स को न केवल उनकी मेहनत के लिए बेहतर पारिश्रमिक मिलेगा, बल्कि उनके लिए एक सुरक्षित भविष्य की नींव भी तैयार होगी। यह कदम निश्चित रूप से उनके जीवन को बेहतर बनाने और उनकी सामाजिक स्थिति को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इस योजना का कार्यान्वयन अगर सफल होता है, तो यह अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल बन सकता है, जिससे गिग वर्कर्स की सुरक्षा और कल्याण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक ठोस कदम उठाया जा सकेगा।