सिर पर लाखों Rudrakshas, तन पर भभूत और एक अडिग संकल्प, महाकुंभ में छाए संत Geetanand Giri Ji महाराज

Edited By Mahima,Updated: 03 Jan, 2025 04:59 PM

with lakhs of rudrakshas on his head ashes on his body and a firm resolve

महाकुंभ 2025 में चर्चा का विषय बने संत गीतानंद गिरी जी महाराज ने 12 साल तक रोजाना सवा लाख रुद्राक्ष धारण करने का संकल्प लिया था। आज उनके पास सवा दो लाख से अधिक रुद्राक्ष हैं। 45 किलो वजन वाले रुद्राक्ष को 12 घंटे तक पहनते हैं और तपस्या में लीन रहते...

नेशनल डेस्क: 2025 के आगाज के साथ ही महाकुंभ मेला नजदीक आ गया है, और संगम तट पर साधु-संतों का आगमन शुरू हो चुका है। यह अवसर भक्तों के लिए एक अत्यधिक महत्वपूर्ण समय है, जहां वे आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए संगम के तट पर आकर साधना करते हैं। ऐसे में एक संत हैं, जिनकी तपस्या और जीवनशैली इन दिनों विशेष रूप से चर्चा का विषय बनी हुई है। हम बात कर रहे हैं गीतानंद गिरी जी महाराज की, जिनकी भव्य तपस्या और रुद्राक्ष धारण करने की अनूठी साधना से हर कोई प्रभावित हो रहा है।

संकल्प साधना और तपस्या के माध्यम से आत्मा का उद्धार
गीतानंद जी महाराज ने महाकुंभ मेला में अपने अनोखे संकल्प और तप के कारण बड़ी चर्चा हासिल की है। उन्होंने 2019 में प्रयागराज के कुंभ मेला के दौरान एक अद्भुत संकल्प लिया था। उनका संकल्प था कि वह 12 साल तक प्रतिदिन एक लाख रुद्राक्ष धारण करेंगे। यह संकल्प साधना और तपस्या के माध्यम से आत्मा के उद्धार के लिए था। वर्तमान में, गीतानंद जी महाराज इस संकल्प को पूरा करने के अपने छठे साल में प्रवेश कर चुके हैं और उन्होंने अब तक सवा दो लाख से भी अधिक रुद्राक्ष धारण किए हैं। रुद्राक्षों का वजन करीब 45 किलोग्राम से अधिक है और उनके संकल्प में अभी और छह साल बाकी हैं। यह संकल्प सिर्फ एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि एक गहरी तपस्या और मानसिक सशक्तिकरण का प्रतीक भी है। 

प्रतिदिन 12 घंटे तक धारण करते हैं रुद्राक्ष
रुद्राक्ष का धारण करना एक कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य है, विशेष रूप से जब उनकी संख्या लाखों में हो और वजन इतना अधिक हो। गीतानंद महाराज ने यह स्पष्ट किया कि वह रुद्राक्षों को 24 घंटे नहीं पहनते। बल्कि, वह प्रतिदिन 12 घंटे तक इन रुद्राक्षों को धारण करते हैं। सुबह पांच बजे से शाम पांच बजे तक रुद्राक्ष उनके शरीर पर रहते हैं। इस दौरान वह अपनी साधना और ध्यान में लीन रहते हैं। इस वक्त के दौरान उनका आहार बहुत हल्का होता है, और वह भोजन में केवल आवश्यक पोषक तत्व लेते हैं ताकि उनकी तपस्या में कोई विघ्न न आए। उन्होंने बताया कि रुद्राक्षों को पहनने से उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ है, और यह उनके आत्म-साक्षात्कार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उनके अनुसार, रुद्राक्ष केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे एक शक्तिशाली माध्यम हैं, जो ध्यान और साधना के दौरान आत्मिक ऊर्जा को संचालित करते हैं।

सारा जीवन गुरुजी के चरणों में समर्पित 
गीतानंद गिरी जी महाराज का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता रेलवे में टीटी (टिकट कलेक्टर) के पद पर कार्यरत थे। उनके माता-पिता के पास संतान नहीं हो रही थी, और तब गुरुजी के आशीर्वाद से उनका परिवार संतान सुख से धन्य हुआ। इसके बाद, गीतानंद जी महाराज ने अपनी संतान को भी गुरुजी के चरणों में समर्पित कर दिया। गीतानंद जी महाराज का जीवन गुरु सेवा और साधना में समर्पित रहा है। वह कहते हैं कि जब वह छोटे थे, तो उनके माता-पिता ने उन्हें गुरुजी के पास भेज दिया था, जहां से उनकी जीवन की यात्रा शुरू हुई। तब से ही वह संन्यासी जीवन जी रहे हैं और गुरु की सेवा में अपनी पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ लगे हुए हैं। उनके अनुसार, गुरु का आशीर्वाद ही वह शक्ति है, जिसने उन्हें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और जीवन को एक नई दिशा दी।

हाईस्कूल तक संस्कृत में ही पढ़े
गीतानंद गिरी महाराज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत माध्यम से प्राप्त की थी। वह हाईस्कूल तक संस्कृत में ही पढ़े हैं। उनका मानना है कि संस्कृत का ज्ञान एक साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर मार्गदर्शन करता है। संस्कृत न केवल धार्मिक अध्ययन का माध्यम है, बल्कि यह मानसिक शांति और ध्यान की गहराई को समझने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

तपस्या और रुद्राक्ष धारण की प्रक्रिया न केवल साधकों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत
महाकुंभ 2025 के दौरान, गीतानंद गिरी जी महाराज की उपस्थिति हर किसी के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। वह उन संतों में शामिल हैं, जो संगम तट पर आकर भगवान का नाम जपने और ध्यान में लीन रहते हैं। उनकी तपस्या और रुद्राक्ष धारण की प्रक्रिया न केवल साधकों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच अध्यात्मिक जागरूकता फैलाने का कार्य भी कर रही है।

जानिए क्या है ध्यान और साधना का महत्व
गीतानंद जी महाराज के जीवन का मुख्य उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार है। वह मानते हैं कि ध्यान और तपस्या के माध्यम से ही व्यक्ति भगवान से मिल सकता है और इस दुनिया के बंधनों से मुक्ति पा सकता है। उनका जीवन एक उदाहरण है कि किस तरह तपस्या, साधना और गुरु सेवा के माध्यम से आत्मिक उन्नति प्राप्त की जा सकती है। उनका जीवन संतुलन और अनुशासन का प्रतीक है, जो आज के समय में हर व्यक्ति के लिए एक आदर्श बन सकता है। 

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