Edited By Rahul Rana,Updated: 10 Nov, 2024 12:26 PM
मनु भाकर, सुधा मूर्ति और फाल्गुनी नायर। इन महिलाओं ने दुनिया को दिखाया है कि चाहे मल्टीनेशनल कंपनी चलानी हो या ओलिम्पिक में पदक जीतना, वे किसी से कम नहीं हैं लेकिन सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है लेकिन सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है। इंटरनेशनल लेबर...
नेशनल डेस्क। मनु भाकर, सुधा मूर्ति और फाल्गुनी नायर। इन महिलाओं ने दुनिया को दिखाया है कि चाहे मल्टीनेशनल कंपनी चलानी हो या ओलिम्पिक में पदक जीतना, वे किसी से कम नहीं हैं लेकिन सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है लेकिन सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) की रिपोर्ट एक कड़वी हकीकत बताती है। इस रिपोर्ट के अनुसार आज भी भारत की 53 फीसदी महिलाएं कार्यबल का हिस्सा ही नहीं बन पाती हैं। इसके पीछे की मुख्य वजह है महिलाओं के कंधों पर घरेलू जिम्मेदारियां होना।
महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी और उसकी चुनौतियां
भारत में महिलाओं ने कई क्षेत्रों में अपनी मेहनत और सफलता से यह साबित कर दिया है कि वे किसी से कम नहीं हैं। सुधा मूर्ति, फाल्गुनी नायर, और मनु भाकर जैसी महिलाएं इस बात का उदाहरण हैं। एक ओर जहां ये महिलाएं मल्टीनेशनल कंपनियां चला रही हैं या ओलंपिक में पदक जीत रही हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी में बड़ी चुनौतियां भी हैं।
आईएलओ की रिपोर्ट: एक कड़वी सच्चाई
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) की रिपोर्ट के अनुसार, आज भी भारत में 53% महिलाएं कार्यबल का हिस्सा नहीं बन पाती हैं। इसका मुख्य कारण है महिलाओं के कंधों पर घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ। वहीं, इसी कारण पुरुषों की संख्या केवल 1.1% है, जो घर के कामों के कारण कामकाजी जीवन में शामिल नहीं हो पाते। इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में 74.8 करोड़ लोग घरेलू जिम्मेदारियों के कारण काम नहीं कर पा रहे हैं, जिनमें 70.8 करोड़ महिलाएं हैं।
वैश्विक और भारतीय स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण
दुनिया की पांच प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में महिलाओं की वर्कफोर्स में भागीदारी का आंकड़ा भिन्न है। उदाहरण के तौर पर चीन में 60.5% महिलाएं कार्यबल का हिस्सा हैं जबकि भारत में यह आंकड़ा सिर्फ 37% है। इसका मतलब यह है कि भारत अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से इस मामले में पीछे है।
महिलाओं के कार्यबल में कम भागीदारी के कारण
कई बार महिलाएं कार्यस्थल पर असुरक्षित महसूस करती हैं, खासकर रात की शिफ्ट्स में। इसके अलावा, महिलाओं की सैलरी भी पुरुषों के मुकाबले कम होती है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एक पुरुष औसतन 100 रुपये कमाता है, जबकि एक महिला की औसत कमाई सिर्फ 40 रुपये होती है।
शादीशुदा महिलाओं की नौकरी
भारत में शादी के बाद महिलाओं के लिए नौकरी करना मुश्किल हो जाता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक, 15 से 49 उम्र की केवल 32% शादीशुदा महिलाएं ही काम करती हैं। वहीं, 98% शादीशुदा पुरुष कामकाजी होते हैं। इसके अलावा, शादी के बाद करीब 13% महिलाएं अपनी नौकरी छोड़ देती हैं।
परिवार का समर्थन न मिलना
महिलाओं को कार्यस्थल पर समर्थन न मिलने का एक प्रमुख कारण परिवार का सहयोग न होना है। एक सर्वे में 43% महिलाओं ने बताया कि परिवार के समर्थन के बिना उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके अलावा महिला नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स को भी उचित फंडिंग नहीं मिल पाती।
महिलाओं की भागीदारी से अर्थव्यवस्था में सुधार
मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की 2015 की रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर वैश्विक कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए, तो 10 साल में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 12 ट्रिलियन डॉलर का इजाफा हो सकता है। भारत में अगर महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए तो 2025 तक भारतीय जीडीपी में 70 करोड़ डॉलर का इजाफा हो सकता है।
महिला उद्यमिता से रोजगार का अवसर
यदि महिला उद्यमियों को बढ़ावा दिया जाए, तो भारत में महिला नेतृत्व वाले एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) की संख्या 1.3 करोड़ से बढ़कर 2030 तक 3 करोड़ तक पहुंच सकती है, जिससे 15 करोड़ नए रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं।
महिला नेतृत्व और रिटर्न
महिला नेतृत्व वाली कंपनियों ने रिटर्न के मामले में भी अच्छा प्रदर्शन किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया कि महिला नेतृत्व वाली कंपनियां पुरुषों की तुलना में 35% अधिक रिटर्न उत्पन्न करती हैं।