रिपोर्ट में खुलासाः शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में बढ़ रहा कट्टरपंथ का ज्वार

Edited By Tanuja,Updated: 10 Dec, 2024 03:26 PM

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बांग्लादेश में बदलते घटनाक्रम और राजनीतिक परिवर्तनों के बीच, इस बात के स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि कट्टरपंथी इस्लामी समूहों का देश....

International Desk: बांग्लादेश में बदलते घटनाक्रम और राजनीतिक परिवर्तनों के बीच, इस बात के स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि कट्टरपंथी इस्लामी समूहों का देश की नीतियों और निर्णय प्रक्रियाओं पर प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट "तनाव से आतंक तक - बांग्लादेश में कट्टरपंथ का बढ़ता ज्वार" (From Tension to Terror-The Rising Tide of Radicalization in Bangladesh) बताती है कि कैसे इस्लामी कट्टरवाद, जो बांग्लादेश की समाज-राजनीतिक परिदृश्य का हिस्सा रहा है, ने विशेष रूप से शेख हसीना सरकार के पतन के बाद एक नया उभार देखा है। बीते कुछ महीनों में, बांग्लादेश ने धार्मिक कट्टरपंथ और उससे प्रेरित हिंसक घटनाओं का गंभीर स्तर पर सामना किया है। युवा पीढ़ी के बीच पनपते इस कट्टरपंथ ने बांग्लादेश के सामाजिक ताने-बाने में गहराई तक पैठ बना ली है। इन घटनाओं ने न केवल देश की बहुलवादी पहचान को चुनौती दी है, बल्कि इसके सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता को भी गंभीर संकट में डाल दिया है।  

 

 कट्टरवाद के प्रमुख कारण  
रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश में कट्टरवाद के उभार में निम्नलिखित कारण मुख्य भूमिका निभा रहे हैं:-  

  • इस्लामी समूहों ने दशकों से शिक्षा क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत की है। 2016 के होली आर्टिसन कैफे हमले में शामिल हमलावर, ढाका स्थित नॉर्थ साउथ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान कट्टरपंथ की ओर झुके थे।  
  • बांग्लादेश में करीब 64,000 मदरसे हैं, जिनमें से कई पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण से बाहर हैं। ये मदरसे गरीब समुदायों के लिए शिक्षा का विकल्प हैं, लेकिन इनमें से कुछ धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने के केंद्र बन गए हैं।  
  • सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं का तेजी से कट्टरपंथ की ओर झुकाव हुआ है।  
  • सांस्कृतिक और धर्मनिरपेक्ष प्रतीकों पर हमला**: धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक माने जाने वाले मूर्तियों और अन्य सांस्कृतिक संरचनाओं को नुकसान पहुंचाया गया।  

 

होली आर्टिसन कैफे हमला और सरकार की प्रतिक्रिया  
2016 में हुए होली आर्टिसन कैफे हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, जिसमें 20 लोगों की मौत हुई, जिनमें कई विदेशी भी शामिल थे। इस हमले के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की। एक "ज़ीरो टॉलरेंस" नीति अपनाई गई, और आतंकवाद से निपटने के लिए एंटी-टेररिज्म यूनिट (ATU)  का गठन किया गया। इन प्रयासों के बावजूद, शिक्षा, सांस्कृतिक और धार्मिक क्षेत्रों में कट्टरपंथ की जड़ें और गहरी होती गईं। 2017 में  Bangladesh Institute of Peace and Security Studies की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया कि निजी विश्वविद्यालय कट्टरपंथ के प्रसार के केंद्र बन रहे थे।


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शेख हसीना की सरकार के तहत किए गए प्रयासों के बावजूद, कट्टरपंथ और धार्मिक असहिष्णुता बांग्लादेश के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं। नई सरकार, जिसे अब यूनुस सरकार के नाम से जाना जाता है, के लिए यह जरूरी है कि वह 2016 के होली आर्टिसन हमले जैसे घटनाओं से सबक ले और कट्टरवाद के खिलाफ व्यापक रणनीति तैयार करे।  बांग्लादेश के लिए यह समय है कि वह अपनी बहुलवादी और धर्मनिरपेक्ष पहचान को पुनः सुदृढ़ करे और कट्टरपंथ के उभार को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए। शिक्षा, सांस्कृतिक संरक्षण, और आतंकवाद विरोधी उपायों पर ध्यान केंद्रित करना इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है।  

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