Edited By PTI News Agency,Updated: 03 Jul, 2021 08:54 PM
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नयी दिल्ली, तीन जुलाई (भाषा) कई उपभोक्ता संगठनों का मानना है कि उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियमों में प्रस्तावित संशोधन सिर्फ उपभोक्ता के समक्ष आने वाले मुद्दों तक सीमित रहने चाहिए। शोध कंपनी कट्स इंटरनेशन ने शनिवार को यह राय जताई।
नयी दिल्ली, तीन जुलाई (भाषा) कई उपभोक्ता संगठनों का मानना है कि उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियमों में प्रस्तावित संशोधन सिर्फ उपभोक्ता के समक्ष आने वाले मुद्दों तक सीमित रहने चाहिए। शोध कंपनी कट्स इंटरनेशन ने शनिवार को यह राय जताई।
कट्स इंटरनेशनल द्वारा आयोजित उपभोक्ता संगठनों की गोलमेज बैठक के दौरान सर्वसम्मति से यह बात उभरकर आई कि ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र से उपभोक्ताओं को फायदा हुआ और इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।
सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियमों के संशोधन के मसौदे पर छह जुलाई तक सार्वजनिक टिप्पणियां मांगी हैं।
प्रस्तावित संशोधनों में धोखाधड़ी वाली सस्ती बिक्री और ई-कॉमर्स मंचों पर गलत तथ्यों की जानकारी देकर वस्तुओं की सेवाओं की बिक्री पर रोक, उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के पास इन इकाइयों का अनिवार्य पंजीकरण शामिल है।
कट्स की ओर से जारी बयान में अहमदाबाद के कंज्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (सीईआरसी) की एडवोकेसी अधिकारी अनुषा अय्यर के हवाले से ई-कॉमर्स नियमों में प्रस्तावित संशोधनों पर चिंता जताई गई है।
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित संशोधन अस्थिर और अस्पष्ट हैं और इनसे असमंजस बढ़ेगा।
मुंबई की कंज्यूमर गाइडेंस सोसायटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन सुरेंद्र कान्सितया ने कहा कि प्रस्तावित संशोधन का मसौदा काफी खराब तरीके से तैयार किया गया है जिससे इनका क्रियान्वयन प्रभावित होगा।
उन्होंने कहा कि यदि इन नियमों को मौजूदा रूप में लागू किया जाता है, तो इससे देश में कारोबार सुगमता की स्थिति बुरी तरह प्रभावित होगी।
कट्स इंटरनेशनल में नीति विश्लेषक उज्ज्वल कुमार ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण (ई- वाणिज्य) नियम 2020 के अधिसूचित होने के एक साल के भीतर ही प्रस्तावित संशोधनों को लेकर सरकार द्वारा दिये जा रहे तर्कों से वह संतुष्ट नहीं है।
उनके मुताबिक नाराज उपभोक्ताओं, व्यापारियों और संघों की ओर से ई- वाणिज्य कारोबार के तहत अनुचित व्यापार व्यवहार किये जाने और बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की शिकायतें मिलने मात्र से ही प्रस्तावित संशोधनों की जरूरत स्थापित नहीं हो जाती है।
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