Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 26 Jan, 2025 05:16 PM
इंडोनेशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित एक विशाल द्वीपीय देश है, जो 17,000 से अधिक द्वीपों का घर है। हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच स्थित यह देश प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता से भरा हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस भूमि पर एक...
इंटरनेशनल डेस्क: इंडोनेशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित एक विशाल द्वीपीय देश है, जो 17,000 से अधिक द्वीपों का घर है। हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच स्थित यह देश प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता से भरा हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस भूमि पर एक समय था जब हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों का दबदबा था और यहां के कई प्रमुख मंदिर इस धार्मिक धरोहर को दर्शाते थे? इंडोनेशिया का इतिहास भारतीय व्यापारियों के आगमन से शुरू होता है। भारतीय उपमहाद्वीप के व्यापारियों ने 2,000 साल पहले इस द्वीप समूह में कदम रखा और साथ में अपनी संस्कृति, परंपराएं और धर्म भी लाए। भारतीय व्यापारियों ने यहां के तटों पर साम्राज्य स्थापित किए, जिनमें जावा और सुमात्रा जैसे प्रमुख द्वीप शामिल थे।
इन व्यापारियों के प्रभाव से यहां हिंदू और बौद्ध धर्म फैलने लगे। कई प्रमुख मंदिरों का निर्माण हुआ, जैसे कि बोरोबुदुर (बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा मंदिर) और प्रम्बानन (हिंदू धर्म का प्रमुख मंदिर)। इन मंदिरों में भारतीय संस्कृति की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थी। उस समय यहां हिंदू राजाओं का शासन था और उनके दरबारों में कवि, विद्वान और पुजारी पूजा अर्चना करते थे, जबकि समाज में देवताओं और राक्षसों की कथाओं का प्रचार-प्रसार हो रहा था।
यह भी पढ़ें: 'विवाह का विरोध करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं' : सुप्रीम कोर्ट
अरब व्यापारियों का आगमन और इस्लाम का प्रसार
7वीं शताब्दी में पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद इस्लाम धर्म का प्रसार पूरी दुनिया में होने लगा। अरब व्यापारी समुद्री मार्गों के जरिए इंडोनेशिया के तटों तक पहुंचे और व्यापार के साथ-साथ इस्लाम धर्म का प्रचार भी किया। मजे की बात यह है कि इन व्यापारियों ने किसी भी प्रकार के युद्ध या खून-खराबे के बिना इस्लाम धर्म को फैलाया। इस्लाम का प्रसार धीरे-धीरे हुआ, और यहां के तटीय साम्राज्य में हिंदू-बौद्ध धर्म की जगह मस्जिदों ने लेनी शुरू कर दी। इसके बावजूद, इस्लाम ने पहले हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों से जुड़ी बातों को सम्मान दिया और समाज में समरसता का माहौल बनाया।
सुल्तान मलिक अल-सलीह: इंडोनेशिया में इस्लाम के संस्थापक
13वीं शताब्दी में, उत्तरी सुमात्रा के समुद्र-पासाई राज्य में इस्लाम धर्म का प्रभाव बढ़ने लगा। यहां के राजा मारा सिलु ने इस्लाम धर्म अपनाया और अपना नाम बदलकर सुल्तान मलिक अल-सलीह रख लिया। इस प्रकार, वह इंडोनेशिया में इस्लाम धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी कब्र पर 1297 ई. की तारीख अंकित हुई, जो इंडोनेशिया में इस्लाम के प्रसार का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।
यह भी पढ़ें: बजट से पहले मोदी सरकार का बड़ा कदम, 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी UPS
वली सोंगो, इस्लाम के प्रचारक
15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान, इंडोनेशिया में इस्लाम का प्रभाव बढ़ा, और इस दौरान एक खास समूह ने इस्लाम के प्रचार-प्रसार का कार्य किया, जिसे वली सोंगो (जावा के नौ मुस्लिम संत) के नाम से जाना जाता है। इस समूह के सदस्य, जैसे सुनन कलिजगा, ने अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखते हुए, इस्लाम को लोककला के माध्यम से फैलाया। उन्होंने कठपुतली के खेल का उपयोग किया, जिसे ‘shadow puppetry’ कहते हैं, और इसके माध्यम से इस्लामिक शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाया।
यूरोपीय उपनिवेशवाद और स्वतंत्रता संग्राम
16वीं शताब्दी के अंत में, यूरोपीय शक्तियों ने इंडोनेशिया के व्यापारिक तटों पर कब्जा करना शुरू किया। पुर्तगालियों ने पहले यहां मसालों के व्यापार पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन बाद में डच (नीदरलैंड्स) ने इनकी जगह ले ली। डचों ने इस क्षेत्र में व्यापार के जरिए अपनी शक्ति स्थापित की और धीरे-धीरे यहां के साम्राज्यों को अपने अधीन कर लिया। इंडोनेशिया में डच शासन का विरोध बढ़ने लगा, खासकर सुमात्रा के एसेह क्षेत्र में, जहां Cut Nyak Dhien जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने जिहाद की अपील की। इसके बाद, 1945 में इंडोनेशिया ने स्वतंत्रता की घोषणा की।
आज का इंडोनेशिया, विविधता में एकता
साल 1945 में इंडोनेशिया की स्वतंत्रता के बाद, यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्या देश एक इस्लामी राज्य बनेगा या धर्मनिरपेक्ष गणराज्य रहेगा। अंत में, भारतीय धर्मों, बौद्धों, मुस्लिमों और अन्य धर्मों का मिश्रण होने के कारण, इंडोनेशिया ने "भिन्नेका तुंगगल इका" यानी "विविधता में एकता" के सिद्धांत को अपनाया। आज इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है, लेकिन यहां विविध धर्मों का संगम है।