Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 18 Jan, 2025 02:46 PM
भारत में कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जहां लोगों को न्याय पाने के लिए कई सालों तक इंतजार करना पड़ता है। लेकिन असम के चिरांग जिले की एक अदालत ने 31 दिसंबर 2024 तक सभी लंबित मामलों को निपटा कर न्याय व्यवस्था में एक नई...
नेशनल डेस्क: भारत में कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जहां लोगों को न्याय पाने के लिए कई सालों तक इंतजार करना पड़ता है। लेकिन असम के चिरांग जिले की एक अदालत ने 31 दिसंबर 2024 तक सभी लंबित मामलों को निपटा कर न्याय व्यवस्था में एक नई मिसाल कायम की है। इस अद्वितीय काम से यह साबित हो गया कि अगर न्यायपालिका और कार्यपालिका एकजुट होकर काम करें, तो किसी भी अदालत में लंबित मामले जल्दी निपटाए जा सकते हैं।
चिरांग की अदालत ने कैसा किया कमाल?
चिरांग जिला की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) अदालत ने साल 2024 के अंत तक 830 मामलों को निपटाया। इनमें से 143 मामले तो पहले से लंबित थे और 687 नए मामले पूरे साल में आए थे। इस दौरान, अदालत ने न केवल सभी मामलों का समाधान किया बल्कि दोषी साबित करने की दर भी राज्य के औसत से ऊपर रही। जहां असम में कन्विक्शन रेट 22.68 फीसदी था, वहीं चिरांग में यह दर बढ़कर 26.89 फीसदी तक पहुंच गई, जो एक शानदार उपलब्धि मानी जा रही है।
मुख्यमंत्री का संदेश आया सामने
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने दिसंबर में कहा था कि राज्य में दोषी साबित करने की दर को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने की दिशा में काम किया जा रहा है। उनका उद्देश्य इसे 30 प्रतिशत तक बढ़ाने का है। यह राज्य के न्यायिक सुधार की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।
क्यों बढ़ रही हैं लंबित मामलों की संख्या?
भारत की अदालतों में इस समय पांच करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं, जिनमें से अधिकांश निचली अदालतों में हैं। इसमें कई मामलों को हल करने में सालों लग जाते हैं, जिससे देश के न्यायिक प्रणाली पर दबाव बढ़ता है। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे अदालतों का भारी बोझ, कर्मचारियों की कमी, जटिल मामले, और प्रक्रियाओं में समय की देरी।
भारत के सुप्रीम कोर्ट में 83,000 से अधिक मामले लंबित हैं, वहीं उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में भी मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि मामलों को जल्दी निपटाने के लिए आधारभूत ढांचे में सुधार और एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल की जरूरत है।
क्या यह बदलाव देशभर में संभव है?
असम के चिरांग जिले की अदालत की सफलता ने यह साबित किया है कि यदि न्यायिक और कार्यपालिका का सहयोग मिले, तो लंबित मामलों का निपटारा संभव है। अगर यह तरीका देश के बाकी हिस्सों में भी अपनाया जाए, तो शायद 'जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड' (विलंबित न्याय, अस्वीकृत न्याय) की पुरानी कहावत अब अतीत बन जाएगी।