Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 17 Mar, 2025 07:41 PM

सुनीता विलियम्स का नाम न केवल अंतरिक्ष में उनकी उपलब्धियों के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि उनके भारत से गहरे रिश्ते के कारण भी वह भारतीयों के लिए एक गर्व की बात रही हैं।
इंटरनेशलन डेस्क: सुनीता विलियम्स का नाम न केवल अंतरिक्ष में उनकी उपलब्धियों के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि उनके भारत से गहरे रिश्ते के कारण भी वह भारतीयों के लिए एक गर्व की बात रही हैं। नासा की ये अंतरिक्ष यात्री जो 9 महीने से अधिक समय तक अंतरिक्ष में फंसी रहीं, अब आखिरकार 18 मार्च को धरती पर लौटने वाली हैं। आइए जानें सुनीता विलियम्स से जुड़े कुछ ऐसे दिलचस्प और अनजाने फैक्ट्स, जिन्हें जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
नौसेना पायलट से अंतरिक्ष यात्री बनने का सफर
सुनीता विलियम्स की यात्रा एक नौसेना पायलट से अंतरिक्ष यात्री तक का सफर बेहद प्रेरणादायक है। उन्होंने साल 1987 में अमेरिकी नौसेना में एक हेलीकॉप्टर पायलट के रूप में अपना करियर शुरू किया था और बाद में 1998 में नासा के अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा बनीं। वह न केवल पायलट थीं, बल्कि एसएच-60 सीहॉक जैसे विमान उड़ाने का उन्हें 30 से अधिक विमानों का अनुभव भी प्राप्त था। 1999 में नासा की ट्रेनिंग के बाद वह अंतरिक्ष यात्रा के लिए तैयार हो गईं और तब से वह अंतरिक्ष यात्रा में अपने योगदान से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गईं।
अंतरिक्ष में बिताए गए समय और स्पेसवॉक की उपलब्धियां
सुनीता विलियम्स ने कुल 321 दिन अंतरिक्ष में बिताए हैं। उन्होंने दो प्रमुख मिशन किए हैं, जिनमें एक्सपीडिशन 14/15 (2006-07) और एक्सपीडिशन 32/33 (2012) शामिल हैं। इन मिशनों में वह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में 195 दिन और 127 दिन तक रहीं। इसके साथ ही, वह छह बार स्पेसवॉक (अंतरिक्ष में चहलकदमी) करने वाली पहली महिला भी बन चुकी हैं। उन्होंने कुल मिलाकर 56 घंटे 40 मिनट तक अंतरिक्ष में स्पेसवॉक की, जो उन्हें इस क्षेत्र की अग्रणी महिलाओं में से एक बनाता है।
भारत से गहरा जुड़ाव कैसे?
सुनीता विलियम्स का भारत से गहरा नाता है, क्योंकि उनके पिता दीपक पंड्या भारतीय मूल के हैं और गुजरात से ताल्लुक रखते हैं। वह हमेशा भारत और भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी विशेष स्नेहभावना व्यक्त करती रही हैं। साल 2007 में अपने पहले अंतरिक्ष मिशन पर जाते वक्त, उन्होंने भारत के अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम का दौरा किया था और अपने साथ अंतरिक्ष में भगवद गीता और भगवान गणेश की मूर्ति ले गई थीं। ये प्रतीक उनके भारतीय मूल से उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाते हैं।
अंतरिक्ष में पहली महिला मैराथन धावक
2007 में, सुनीता विलियम्स ने एक अद्वितीय उपलब्धि हासिल की जब उन्होंने अंतरिक्ष में रहते हुए बोस्टन मैराथन दौड़ी। जीरो ग्रैविटी (शून्य गुरुत्वाकर्षण) में दौड़ना आसान नहीं था, लेकिन सुनीता ने अपने आप को ट्रेडमिल से बांधकर 42.2 किलोमीटर की दूरी तय की। इस दौरान, पृथ्वी पर उनके साथी धावकों ने भी मैराथन में भाग लिया, जिससे वह वर्चुअली जुड़ी रहीं। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, जो अंतरिक्ष में मानव की शारीरिक क्षमता को प्रदर्शित करती है।
कमर्शियल क्रू प्रोग्राम का हिस्सा
साल 2015 में, सुनीता विलियम्स को नासा के कमर्शियल क्रू प्रोग्राम के तहत बोइंग स्टारलाइनर मिशन के लिए चुना गया था। इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष यात्रा को निजी कंपनियों के सहयोग से नया आयाम देना था। यह मिशन न केवल अंतरिक्ष के क्षेत्र में, बल्कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुआ था।
सम्मान और पुरस्कार
सुनीता विलियम्स के करियर के दौरान उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया है, जिनमें नेवी कमेंडेशन मेडल, नासा स्पेसफ्लाइट मेडल, और पद्म भूषण शामिल हैं। उन्हें भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण 2008 में उनके अंतरिक्ष मिशनों में योगदान के लिए दिया गया था। यह सम्मान न केवल उनके विज्ञान में योगदान को मान्यता प्रदान करता है, बल्कि भारत के साथ उनके गहरे रिश्ते को भी सम्मानित करता है।